एक कोशिश मिल बैठने की....

Sunday, September 20, 2015

पाकिस्तान:-हसन निसार के विचार

एक पाकिस्तानी चैनल पर हसन निसार के साथ बातचीत के मुख्य अंश।
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ऐंकर उवाचs-: हसन निसार साहब मुसलमान की कोई इन्वेंशन नहीं है,जहाँ भी गए उठ के,कैम्ब्रिज भी गए लेकिन वहाँ भी कुछ नहीं कर सके,इसकी वजह क्या है?मुसलमान होना तो वजह नहीं है न इसकी?
हसन निसारोsवाच-: देखें भटके हुए मुसलमान होना इसकी वजह है।मैं जेनुइनली ये समझता हूँ कि देखें इनके सारे स्ट्रेसेज़ ही गलत हैं,अच्छा वो जुमला है न?रोको मत जाने दो,इसको तीन तरह से आगे-पीछे करो तो मतलब ही उलट-पुलट हो जाता है।
ये जो दीन का फ़हम है न!मतलब कितने नाकारा लोगों के अंदाज़े हैं,मतलब इनलोगों की सोच देखें और अंदाज़ा लगाएं कि एक बंदा है,उसका एक हुलिया है,उसने एक गेटअप बनाया हुआ है,अरबी भी वो बोल लेता है लेकिन बात वो क्या कर रहा है?तब तो कोई आइन भी नहीं होता था।बन्दा पूछे यार!ये पीछे पड़ा रहा होगा।नस्लों का सत्यानाश कर देगा।
अब स्ट्रेस है सारा आख़िरत पे कि दुनिया चार रोज़ा है,पता नहीं क्या कुत्ते की हड्डी है और पता नहीं क्या-क्या बकवासें।ओ भाई!ये इंकलाब का दीन था,ये फातेह लोगों का दीन था,ग़ालिब लोगों का दीन था और तुमने दुनियाँ को कुत्ते के लिए हड्डी की तरह है,चार रोज़ा है,फलाना है बना दिया।सारा आख़िरत है तो जाओ,आख़िरत पे देख लेना कि क्या होता है तुम्हारे साथ?
ये जो दो टके की दुनियाँ नहीं संभाल सका उसकी आख़िरत क्या होनी है!इनका तो स्ट्रेस ही गलत है,इनको तो आख़िरत लफ्ज़ का मतलब ही नहीं पता।इसका माद्दा है आखिर,ये हम बात कर रहे हैं ना और अगले लम्हे में जो हम दाख़िल हुए,फिर उसके अगले लम्हे में।ये है आख़िरत लेकिन हमने आख़िरत को कनफाइंड कर दिया लाइफ़ आफ्टर डेथ तक।ज़िन्दगी में तो एक मुसलमान जब होश संभालता है तभी से उसकी आख़िरत शुरू हो जाती है।
अच्छा 700 से ज़्यादा आयात को करेक्ट करे जो बड़ा दीन का चैम्पियन है इस्लाम का इनमें से।तफ़क्कुर और तदव्वुर,गौर-ओ-फ़िकर कर,ओ कायनात पे कोई सोच को ग़ौर कर,तहसीले कायनात,तस्कीरे कायनात,ये है क्या?इसपे ग़ौर कर।तो नहीं!
इल्म मोमिन का,ये कोई जुमला है?अच्छा वो जो क़ैदी छोड़े आक़ा ने और फरमाया कि जो हमारे बच्चों को पढ़ा दे।ओये वो फिका पढ़ा रहा था?कुरआन पढ़ा रहा था वो काफ़िर हमारे बच्चों को उस वक्त?
और टोटल कन्फ्यूज़न है!हमने जब स्पेन फ़तह किया,ओये अरबों ने किया और वे तुम्हें न तब मुँह लगाते थे और न अब मुँह लगाते हैं।जब हमने यूँ किया,वो तुर्कों की फतूहात अपने पे डाल लीं।टके की कॉन्ट्रिब्यूशन नहीं है ख़ास तौर पे सबकॉन्टिनेंट के मुसलमानों के तो पल्ले ही कुछ नहीं है सिवाय कन्फ्यूज़न के।इनसे आँय,बाँय,शांँय जितना मर्ज़ी करा लो।ये कभी गोरियों की गोद में जा बैठेंगे तो कभी ग़ज़नबियों की और आजकल उधर से वो रेला आ रहा है तो जान मुसीबत में पड़ी हुई है,कन्फ्यूज़ से लोग हैं ये।
एक अरब ने वो बेइज़्ज़ती की एक पाकिस्तानी डॉक्टर की रियाद में,वो हर 5 मिनट पर अपनी मेज़ से उठ कर चला जाय कि  when did we conquered spain उसने कहा you stupid,we conquered spain,we Arabs conquered spain ये प्राइड है उनका।
तुमने तुर्कों की फतूहात अपने पे डाल लीं और ग़ज़नबियों की भी।वो तुर्क था भई,अमीर तैमूर बरलास था,ये इंवेडर्स थे,फौरेनर्स थे,अपना कौन है हीरो?मलग्गी,जग्गा,ग्यासा,फलाना गुज्जर?भैये?इनको पता-वता कुछ नहीं है ये डींगें मारते हैं बस ऐवें ही इधर-उधर।अल्लाह पाक़ ने तो पूरा इन्साफ किया है,वह खोपड़ी,वही भेजा,दो टाँगे,दो बाज़ू लेकिन माचिस नहीं बनाई।ग़ालिब माचिस देख के,ग़ालिब हमारा एक जीनियस है,क्रिएटिविटी का सिम्बल है पागल हो गया,बोला कैसी क़ौम आई है जो आग जेब में ले के फ़िर रही है?ये औक़ात है इन लोगों की!आखिरी ईजाद है इनकी चारपाई या कमूड़ा इन्होंने बुन लिया होगा।किन लोगों से जो मरीक पर पहुँचे हुए हैं उनके साथ टक्करें,मतलब बिल्कुल ऐवें ही।कोडू जैसा कोई बन्दा जैसे 9फ़ुट के बन्दे हरक्यूलिस को चैलेन्ज कर रहा हो ये तो सूरतेहाल है।
अच्छा समझेंगे नहीं!मैं अपने बच्चे को जब तक झिंझोड़ूँगा कि ओये तेरे ग्रेड्स देख,कुछ शरम कर,तेरी फीस पूरी जा रही है,ट्यूटर टाइम पे आ रहा है और पढ़ा रहा है,ओये इंसान बन क्या कर रहा है?पहली क़ौम है इंसानी तारीख़ में ये हम पाकिस्तानी जो आपस में झूठ का बाँटन करते हैं,झूठ का।
ऐंकर उवाच:- हसन निसार साहब क्या ये सब झूठ है कि हमारी तारीख शुरू होती है मोहम्मद बिन क़ासिम से,712ईस्वी से?
हसनोsवाच-: देखो अगर रिलीज़न अगर वाकई कोई बाइंडिंग फैक्टर होता,अल्टीमेट!ओ यार अभी कल तो तुम गुज़रे ही मशरिक़ी पाकिस्तान की क्राइसिस से,कल की बात है।ये अफगानिस्तान ये साथ ईरान एक एक मुल्क क्यों नहीं बन जाता?ये चवन्नियाँ मारने से तो नहीं बन जाता ना?हक़ायक़ हैं ज़िन्दगी के!मुहम्मद बिन क़ासिम was an arab and he was a conqueror लेकिन contribution क्या है दुनियाँ में बतौर मुसलमान?सिफ़र!एक अरब चालीस करोड़ मुसलमान और कॉन्ट्रिब्यूशन?सिफ़र।छित्तर उनसे खाते हैैं,डिक्टेशन उनसे लेते हैं।न्यूक्लियर के ऊपर वर्क लगा के पक्खियाँ झल रहे हैं,चलांगी पक्खियाँ।holiest shrines के जो आपके मुहाफ़िज़ बैठे हैं,माशाल्लाह आपके अन्नदाता।आपको रियाल-शियाल देने वाले ये दो,उधार पेट्रोल देने वाले।अपनी हिफाज़त के लिए उन्होंने वहाँ अमरीकन रखे हुए हैं।छोड़ो यार ऐवें ही।
ऐंकरोsवाच:- हसन निसार साहब एक बात बताइये कि जिस तरह से आज के प्रोग्राम डिस्कशन भी हुई कि अगर हम अरबी सीखना शुरू कर दें,अपने दीन को ख़ुद समझना शुरू कर दें।हम अगर सख़्ततरीन सज़ायें दें लोगों को,इबरत का निशाना बना दें जो लोग रेप करते हैं,मिलावट करते हैं तो लगता है कि कोई तब्दीली आएगी इस मुल्क में या नहीं आएगी या 62-63 लागू कर दें।
हसननिसारोsवाच:- नहीं नहीं मेरे नज़दीक ये सॉल्यूशन नहीं हैं,देखें बात सुनें।हमारे घर बच्चों को पढ़ाने 2टाइम क़ारी आता है,हर घर का यही हाल है कुरआन पढ़ा भी जाता है और जो थोड़े पढ़े-लिखे घराने हैं या उससे ज़रा ज़्यादा पढ़े-लिखे घराने हैं वहाँ तरजुमे के साथ पढ़ाता है और एक नतीजे पे मैं पहुँचा हूँ कि जब तक ये औलिया मक़बूल हैं ना तब तक मुसलमानों की हालत बेहतर नहीं हो सकती है।मेरी बात समझें ये जो तरजुमा समझ नहीं आता,मतलब what non-sense?मतलब लैंग्वेज सीखने में बन्दा अपनी उम्र तबाह कर दे?क्या है ये?देखें ये बिल्कुल और तरीक़े की किताब है,ये कोई ना तो वारिस शाह है,ये तो अजीबो-ग़रीब कमेंट था ग़ालिब का।न तो ये ग़ालिब का कलाम है ना ही ये वारिस शाह का कलाम  है,ये अल्लाह का कलाम है,सीधी-सादी बातें हैं।अब जो मुनाफ़िक़ होगा,गन्दा होगा,नीच होगा उसको चाहे अरबी में पढ़ा दें कोई तब्दीली नहीं आनी।जैसे हाथ काटने की सज़ा मौक़ूफ़ फ़रमाई हजरत उमर बिन ख़िताब ने वो बहुत बड़े आदमी थे,आक़ा के बाद अगर कोई कद्दावर शख्सियत है तो वो हजरत उमर की है तो हुज़ूर उन्होंने जब वो सज़ा मौक़ूफ़ की तो वजह क्या थी?अब इस मुल्क में भूख नाच रही है,मैं कह रहा हूँ कि शरीयत ले आओ तो तुम्हें 19करोड़ में से साढ़े 19करोड़ मारने पड़ेंगे क्योंकि माँओं के पेटों में जो बच्चे पल रहे हैं वो भी बेईमान हैं।