tag:blogger.com,1999:blog-75532317152560064412024-03-06T06:46:09.970+05:30महफ़िलविभावरी रंजनhttp://www.blogger.com/profile/17929447279673536929noreply@blogger.comBlogger41125tag:blogger.com,1999:blog-7553231715256006441.post-75217679386116765032021-03-14T13:29:00.001+05:302021-03-15T07:03:29.308+05:30वर्त्तमान परिदृश्य और मेरे विचार<div>2014 से पहले जब देश में पप्पू पार्टी का शासन था तो ऐसा नहीं था कि भारत में सोने की चिड़ियाँ उड़ा करती थीं,और सारे युवा नौकरियों में व्यस्त रहा करते थे।वही हाल अब भी है जब भाजपा की सरकार है,थोड़ा बहुत अन्तर है और हमेशा ही होता है।हालाँकि आज के समय में युवा नौकरियों से महरूम है और सत्ता इसमें कुछ भी कर पाने में विफल है।सरकार नौकरियों के विकल्प नहीं ढूँढ रही बल्कि नए नए प्रोजेक्ट बनाने में मशगूल है और ये सोच रही है कि इससे युवा रोजगार पा लेंगे लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर रोजगार की व्यवस्था के लिए चीन की तरफ देखना चाहिए,लगभग आप के साथ आज़ाद हुआ देश कहाँ से कहाँ पहुँच गया जो न केवल आपको आँखें दिखाता है बल्कि एक बार हराया भी है।चीन ने अपनी जनसँख्या को काम की तरफ लगा दिया,उत्पादन को राष्ट्रीय विकास का महत्वपूर्ण अंग बना डाला और आज 99% देश चीन से सामान खरीदने को विवश हैं लेकिन भारत आज भी केवल प्रोपोगंडा में फँसा हुआ है।</div><div><br></div><div>बहरहाल विकास की प्रक्रिया कभी नहीं रुकती और न ही रुक सकती है क्योंकि वो आवश्यकता के अनुसार हो जाती है चाहे नमो आएं या पप्पू आएं।लेकिन राजनैतिक पार्टियों के आईटी सेल की कृपा से आज भारतीय लोग बस मोदी और एन्टी मोदी के फेर में हैं और इससे देश का एक रत्ती भी भला नहीं होने वाला।</div><div><br></div><div>सोचने की बात है कि सारी मीडिया खरीदी हुई है।मीडिया का एक वर्ग मोदी की शिकायत में दिन रात एक किये हुए है तो दूसरा वर्ग मोदी का गुणगान करते नहीं थकता है।लेकिन कोई नहीं दिखता है जोकि निष्पक्ष रूप से अपनी बात रखे,या तो मोदी के पक्ष में रहेंगे या फिर विपक्ष में।</div><div><br></div><div>भारत में कोई भी काम हो रहा है उसके बारे मोदी ब्रिगेड चिल्ला-चिल्ला कर कहती है कि मोदी जी ने किया है,मोदी जी ने किया है।मीडिया का मोदी वाला वर्ग भी गले फाड़-फाड़ कर मोदी जी का गुणानुवाद करता है कि मोदी तो संत हैं,उनका कौन है जिनके लिए वो कुछ करेंगे वगैरह वगैरह बातें,कमाल की बात ये है कि मोदी का कितना बढ़िया नियंत्रण है कि लोग गलती से भी किसी बढ़िया काम का श्रेय किसी और को नहीं देते।सारा बढ़िया काम सिर्फ मोदी ही करवा रहे हैं,नीचे से ऊपर सबकुछ वही कर रहे हैं मजदूर से लेकर मैनेजर तक सब मोदी जी ही हैं और कोई नहीं।</div><div><br></div><div>अच्छा कैमरे का ऐंगल पहचानने में मोदी साहब का जवाब नहीं।आप देखें कि वो अपने और कैमरे के बीच खड़े मार्क जुकरबर्ग को भी साइड कर देते हैं।आजकल आप नमो की दाढ़ी देख लें कितनी चमक रही है?बहुत सम्भव है कि बंगाल चुनावों के बाद नमो जो ये गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की तरह दाढ़ी बढ़ाये घूम रहे हैं वो कट जाए।लेकिन इससे आप किसी को खराब व्यक्ति सिद्ध नहीं कर सकते,गोधराकांड में भी देखें पप्पू पार्टी और भाजपा विरोधी तमाम लोगों ने लगभग एकजुट होकर मोदी को फँसाने की बहुत कोशिश की लेकिन होइहैं सोइ जो राम रचि राखा और हरिकृपा से मोदी बच गए और आगे चलकर पप्पू और उसी की मीडिया को ऐसा मैनेज किया कि चुनाव जीत गए।</div><div><br></div><div>अच्छा हुआ-बुरा हुआ सब हुआ लेकिन सामान्य जनता तक सही चीज़ नहीं पहुँची,सामान्य जनता तक नौकरी नहीं पहुँची।अकेले मौनमोहन सरकार के कार्यकाल के दौरान 2012-2013 में जितनी वैकेंसियां निकलीं वो उसके बाद में निकली सभी वैकेंसियों से अधिक थीं।</div><div><br></div><div>मैंने अपनी बेटी को बताया है कि कोई विशेष अखबार और कोई विशेष न्यूज़ चैनल नहीं देखना है क्योंकि उसमें सत्ता के पक्ष में हो या विपक्ष में लेकिन परोसा सिर्फ झूठ ही जाएगा।इसलिए सारी खबरों की पड़ताल करो उसके बाद विश्वास करो।</div><div>वोट मोदी जी या पप्पू गाँधी को मत दो बल्कि निष्पक्ष आकलन करो कि किसको वोट दें नहीं समझ आये तो किसी लोकल व्यक्ति को अपना वोट देकर बरबाद कर दो,सबसे बुरी स्थिति में वोट नहीं देने का तो विकल्प है ही।</div><div><br></div><div>कुल मिलाकर स्थिति आसान नहीं है,यदि 2024 में भाजपा हारी तो आने वाले 20-25 साल तक सत्ता का सुख नहीं भोग सकेगी और जनता को एक रत्ती अफ़सोस नहीं होगा।वैसे मोदी और अमित शाह को मीडिया और पब्लिक मैनेजमेंट के सारे गुर पता हैं।अपना ट्रम्प कार्ड वो अंत में खेलते हैं तो हो सकता है कि 2024 चुनावों के ऐन पहले पाकिस्तान से युद्ध हो जाये और भारत विजयी हो और बहुत सम्भव इसका सीधा फल चुनावों पर पड़ेगा और फ़ल कुछ अलग नहीं होगा बल्कि सम्भवतः एक बार और सत्ता में आ जायेंगे।</div><div><br></div><div>डिस्क्लेमर:-मेरे द्वारा काँग्रेस को पप्पू पार्टी कहने पर कोई ये न समझे कि मैं भक्त हूँ हालाँकि कुछ दुश्मनों ने यही दुष्प्रचार किया हुआ है और मैं उनको तेल पिलाया हुआ लट्ठ लेकर ढूँढ भी रहा हूँ पर सारी मेहनत के बाद भी अभी कोई मिला नहीं है।खैर मैं काँग्रेस को पप्पू पार्टी इसलिए कहता हूँ कि ये वाहियात पार्टी मुझे सख़्त नापसन्द है और मुझे पब्लिकली अपनी नापसन्दगी का डिस्क्रिप्शन नहीं देना है तो कृपया मत पूछियेगा।</div>विभावरी रंजनhttp://www.blogger.com/profile/17929447279673536929noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7553231715256006441.post-54650351691932189832019-07-07T11:07:00.000+05:302019-07-07T11:07:07.931+05:30कोइलिया<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
उछहल चलल कोईलिया वन में डाल-डाल कुहुकेला।<br />
चलल मोजरिया बगिया हुलसल रस झर-झर बरसेला।<br />
<br />
जागल मन में सुतल पिरितिया जिय में जोति जरेला।<br />
पात-पात पल-पल में बउराइल जिनगी जागि हँसेला।<br />
<br />
तब तन-मन धीरज न माने जब पछुआ लहकेला।<br />
गाँव-गाँव में डगर-डगर में सजल रूप के मेला।<br />
<br />
हिले-मिले के मिलल सनेसा गली गली ठहकेला।<br />
घूँघट खुलल कलिन के भँवरन के मधु बीन बजेला।<br />
<br />
सरसों तीसी दगमग होके चुनरी खूब रँगेला।<br />
सिहरल अंग पपीहरा पिहिकल हिय में हूक उठेला।<br />
<br />
हँसल गुलाब फँसल रंग में मन उमगि टीस टमकेला।<br />
चमक दमक कुछ और हो गइल जग जगमग हुलसेला।<br />
<br />
मंगल गीत चलल दुनियाँ में चित सबकर चहकेला।<br />
तन मन बदलि गइल तिरिया के अंग अंग कसकेला।<br />
<br />
अंगिया भइल सकेत तिरियवा के तब मन बहकेला।<br />
हँसी-खुशी सब एक ओर बा एक ओर कलपेला।<br />
<br />
ए बसन्त!हम कइसे हुलसीं भूखे जीव डहकेला।<br />
उछहल चलल कोइलिया बन में डाल-डाल कुहुकेला।</div>
विभावरी रंजनhttp://www.blogger.com/profile/17929447279673536929noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7553231715256006441.post-53605364859484057272015-09-20T09:49:00.002+05:302021-03-15T07:13:48.743+05:30पाकिस्तान:-हसन निसार के विचार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
एक पाकिस्तानी चैनल पर हसन निसार के साथ बातचीत के मुख्य अंश।<br>
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ऐंकर उवाचs-: हसन निसार साहब मुसलमान की कोई इन्वेंशन नहीं है,जहाँ भी गए उठ के,कैम्ब्रिज भी गए लेकिन वहाँ भी कुछ नहीं कर सके,इसकी वजह क्या है?मुसलमान होना तो वजह नहीं है न इसकी?<br>
हसन निसारोsवाच-: देखें भटके हुए मुसलमान होना इसकी वजह है।मैं जेनुइनली ये समझता हूँ कि देखें इनके सारे स्ट्रेसेज़ ही गलत हैं,अच्छा वो जुमला है न?रोको मत जाने दो,इसको तीन तरह से आगे-पीछे करो तो मतलब ही उलट-पुलट हो जाता है।<br>
ये जो दीन का फ़हम है न!मतलब कितने नाकारा लोगों के अंदाज़े हैं,मतलब इनलोगों की सोच देखें और अंदाज़ा लगाएं कि एक बंदा है,उसका एक हुलिया है,उसने एक गेटअप बनाया हुआ है,अरबी भी वो बोल लेता है लेकिन बात वो क्या कर रहा है?तब तो कोई आइन भी नहीं होता था।बन्दा पूछे यार!ये पीछे पड़ा रहा होगा।नस्लों का सत्यानाश कर देगा।<br>
अब स्ट्रेस है सारा आख़िरत पे कि दुनिया चार रोज़ा है,पता नहीं क्या कुत्ते की हड्डी है और पता नहीं क्या-क्या बकवासें।ओ भाई!ये इंकलाब का दीन था,ये फातेह लोगों का दीन था,ग़ालिब लोगों का दीन था और तुमने दुनियाँ को कुत्ते के लिए हड्डी की तरह है,चार रोज़ा है,फलाना है बना दिया।सारा आख़िरत है तो जाओ,आख़िरत पे देख लेना कि क्या होता है तुम्हारे साथ?<br>
ये जो दो टके की दुनियाँ नहीं संभाल सका उसकी आख़िरत क्या होनी है!इनका तो स्ट्रेस ही गलत है,इनको तो आख़िरत लफ्ज़ का मतलब ही नहीं पता।इसका माद्दा है आखिर,ये हम बात कर रहे हैं ना और अगले लम्हे में जो हम दाख़िल हुए,फिर उसके अगले लम्हे में।ये है आख़िरत लेकिन हमने आख़िरत को कनफाइंड कर दिया लाइफ़ आफ्टर डेथ तक।ज़िन्दगी में तो एक मुसलमान जब होश संभालता है तभी से उसकी आख़िरत शुरू हो जाती है।<br>
अच्छा 700 से ज़्यादा आयात को करेक्ट करे जो बड़ा दीन का चैम्पियन है इस्लाम का इनमें से।तफ़क्कुर और तदव्वुर,गौर-ओ-फ़िकर कर,ओ कायनात पे कोई सोच को ग़ौर कर,तहसीले कायनात,तस्कीरे कायनात,ये है क्या?इसपे ग़ौर कर।तो नहीं!<br>
इल्म मोमिन का,ये कोई जुमला है?अच्छा वो जो क़ैदी छोड़े आक़ा ने और फरमाया कि जो हमारे बच्चों को पढ़ा दे।ओये वो फिका पढ़ा रहा था?कुरआन पढ़ा रहा था वो काफ़िर हमारे बच्चों को उस वक्त?<br>
और टोटल कन्फ्यूज़न है!हमने जब स्पेन फ़तह किया,ओये अरबों ने किया और वे तुम्हें न तब मुँह लगाते थे और न अब मुँह लगाते हैं।जब हमने यूँ किया,वो तुर्कों की फतूहात अपने पे डाल लीं।टके की कॉन्ट्रिब्यूशन नहीं है ख़ास तौर पे सबकॉन्टिनेंट के मुसलमानों के तो पल्ले ही कुछ नहीं है सिवाय कन्फ्यूज़न के।इनसे आँय,बाँय,शांँय जितना मर्ज़ी करा लो।ये कभी गोरियों की गोद में जा बैठेंगे तो कभी ग़ज़नबियों की और आजकल उधर से वो रेला आ रहा है तो जान मुसीबत में पड़ी हुई है,कन्फ्यूज़ से लोग हैं ये।<br>
एक अरब ने वो बेइज़्ज़ती की एक पाकिस्तानी डॉक्टर की रियाद में,वो हर 5 मिनट पर अपनी मेज़ से उठ कर चला जाय कि when did we conquered spain उसने कहा you stupid,we conquered spain,we Arabs conquered spain ये प्राइड है उनका।<br>
तुमने तुर्कों की फतूहात अपने पे डाल लीं और ग़ज़नबियों की भी।वो तुर्क था भई,अमीर तैमूर बरलास था,ये इंवेडर्स थे,फौरेनर्स थे,अपना कौन है हीरो?मलग्गी,जग्गा,ग्यासा,फलाना गुज्जर?भैये?इनको पता-वता कुछ नहीं है ये डींगें मारते हैं बस ऐवें ही इधर-उधर।अल्लाह पाक़ ने तो पूरा इन्साफ किया है,वह खोपड़ी,वही भेजा,दो टाँगे,दो बाज़ू लेकिन माचिस नहीं बनाई।ग़ालिब माचिस देख के,ग़ालिब हमारा एक जीनियस है,क्रिएटिविटी का सिम्बल है पागल हो गया,बोला कैसी क़ौम आई है जो आग जेब में ले के फ़िर रही है?ये औक़ात है इन लोगों की!आखिरी ईजाद है इनकी चारपाई या कमूड़ा इन्होंने बुन लिया होगा।किन लोगों से जो मरीक पर पहुँचे हुए हैं उनके साथ टक्करें,मतलब बिल्कुल ऐवें ही।कोडू जैसा कोई बन्दा जैसे 9फ़ुट के बन्दे हरक्यूलिस को चैलेन्ज कर रहा हो ये तो सूरतेहाल है।<br>
अच्छा समझेंगे नहीं!मैं अपने बच्चे को जब तक झिंझोड़ूँगा कि ओये तेरे ग्रेड्स देख,कुछ शरम कर,तेरी फीस पूरी जा रही है,ट्यूटर टाइम पे आ रहा है और पढ़ा रहा है,ओये इंसान बन क्या कर रहा है?पहली क़ौम है इंसानी तारीख़ में ये हम पाकिस्तानी जो आपस में झूठ का बाँटन करते हैं,झूठ का।<br>
ऐंकर उवाच:- हसन निसार साहब क्या ये सब झूठ है कि हमारी तारीख शुरू होती है मोहम्मद बिन क़ासिम से,712ईस्वी से?<br>
हसनोsवाच-: देखो अगर रिलीज़न अगर वाकई कोई बाइंडिंग फैक्टर होता,अल्टीमेट!ओ यार अभी कल तो तुम गुज़रे ही मशरिक़ी पाकिस्तान की क्राइसिस से,कल की बात है।ये अफगानिस्तान ये साथ ईरान एक एक मुल्क क्यों नहीं बन जाता?ये चवन्नियाँ मारने से तो नहीं बन जाता ना?हक़ायक़ हैं ज़िन्दगी के!मुहम्मद बिन क़ासिम was an arab and he was a conqueror लेकिन contribution क्या है दुनियाँ में बतौर मुसलमान?सिफ़र!एक अरब चालीस करोड़ मुसलमान और कॉन्ट्रिब्यूशन?सिफ़र।छित्तर उनसे खाते हैैं,डिक्टेशन उनसे लेते हैं।न्यूक्लियर के ऊपर वर्क लगा के पक्खियाँ झल रहे हैं,चलांगी पक्खियाँ।holiest shrines के जो आपके मुहाफ़िज़ बैठे हैं,माशाल्लाह आपके अन्नदाता।आपको रियाल-शियाल देने वाले ये दो,उधार पेट्रोल देने वाले।अपनी हिफाज़त के लिए उन्होंने वहाँ अमरीकन रखे हुए हैं।छोड़ो यार ऐवें ही।<br>
ऐंकरोsवाच:- हसन निसार साहब एक बात बताइये कि जिस तरह से आज के प्रोग्राम डिस्कशन भी हुई कि अगर हम अरबी सीखना शुरू कर दें,अपने दीन को ख़ुद समझना शुरू कर दें।हम अगर सख़्ततरीन सज़ायें दें लोगों को,इबरत का निशाना बना दें जो लोग रेप करते हैं,मिलावट करते हैं तो लगता है कि कोई तब्दीली आएगी इस मुल्क में या नहीं आएगी या 62-63 लागू कर दें।<br>
हसननिसारोsवाच:- नहीं नहीं मेरे नज़दीक ये सॉल्यूशन नहीं हैं,देखें बात सुनें।हमारे घर बच्चों को पढ़ाने 2टाइम क़ारी आता है,हर घर का यही हाल है कुरआन पढ़ा भी जाता है और जो थोड़े पढ़े-लिखे घराने हैं या उससे ज़रा ज़्यादा पढ़े-लिखे घराने हैं वहाँ तरजुमे के साथ पढ़ाता है और एक नतीजे पे मैं पहुँचा हूँ कि जब तक ये औलिया मक़बूल हैं ना तब तक मुसलमानों की हालत बेहतर नहीं हो सकती है।मेरी बात समझें ये जो तरजुमा समझ नहीं आता,मतलब what non-sense?मतलब लैंग्वेज सीखने में बन्दा अपनी उम्र तबाह कर दे?क्या है ये?देखें ये बिल्कुल और तरीक़े की किताब है,ये कोई ना तो वारिस शाह है,ये तो अजीबो-ग़रीब कमेंट था ग़ालिब का।न तो ये ग़ालिब का कलाम है ना ही ये वारिस शाह का कलाम है,ये अल्लाह का कलाम है,सीधी-सादी बातें हैं।अब जो मुनाफ़िक़ होगा,गन्दा होगा,नीच होगा उसको चाहे अरबी में पढ़ा दें कोई तब्दीली नहीं आनी।जैसे हाथ काटने की सज़ा मौक़ूफ़ फ़रमाई हजरत उमर बिन ख़िताब ने वो बहुत बड़े आदमी थे,आक़ा के बाद अगर कोई कद्दावर शख्सियत है तो वो हजरत उमर की है तो हुज़ूर उन्होंने जब वो सज़ा मौक़ूफ़ की तो वजह क्या थी?अब इस मुल्क में भूख नाच रही है,मैं कह रहा हूँ कि शरीयत ले आओ तो तुम्हें 19करोड़ में से साढ़े 19करोड़ मारने पड़ेंगे क्योंकि माँओं के पेटों में जो बच्चे पल रहे हैं वो भी बेईमान हैं।</div>
विभावरी रंजनhttp://www.blogger.com/profile/17929447279673536929noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7553231715256006441.post-40406039853358856622011-01-28T09:13:00.002+05:302012-01-25T19:39:27.569+05:30केदारनाथ पाण्डेय<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">मंच के सफल गायक कवि,मृदुभाषी और लगनशील <b>श्री केदारनाथ पाण्डेय</b> का जन्म बिहार के सीवान जिले में १५ नवम्बर सन् १९३५ ई० को एक मध्यम वर्गीय प्रतिष्ठित परिवार में हुआ। आपके पिता साहित्याचार्य स्वर्गीय <b>श्री सीताराम पाण्डेय</b> संस्कृत के महान् विद्वान के रूप में विख्यात हैं।आपकी प्रारम्भिक शिक्षा श्री गोविन्द संस्कृत विद्यालय,ओझवलिया(मीरगंज)में हुई,जहाँ आपके पिताजी प्रधानाध्यापक थे।<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiT1GnT9C1UD6cJm2J9zjsWCzF3QhK7AtqHEdmkcq0RWW8ZEpzEmaLwakRkGrawN56dsixxAL6Bg59SPlNuSD9LvDM34vhl_xTWHWuIsI1ljBJo3fHgxxoNUufIOJKbR70X4_yICKeGR6wv/s1600/kedarnathpandey.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiT1GnT9C1UD6cJm2J9zjsWCzF3QhK7AtqHEdmkcq0RWW8ZEpzEmaLwakRkGrawN56dsixxAL6Bg59SPlNuSD9LvDM34vhl_xTWHWuIsI1ljBJo3fHgxxoNUufIOJKbR70X4_yICKeGR6wv/s200/kedarnathpandey.jpg" width="150" /></a></div><br />
तत्पश्चात् जब आपके पिताजी की नियुक्ति संस्कृत हाई स्कूल गोपालगंज के प्रधानाध्यापक के पद पर हुई तब आप भी गोपालगंज चले गए। और यहीं के आवास-काल में दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय से आपने साहित्याचार्य और हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से साहित्यरत्न की परीक्षाएँ पास की। शिक्षा समाप्ति के उपरान्त कई वर्षों तक मधुसूदन विद्यालय,छितौली सारण में और कुछ वर्षों तक महेन्द्र हाई स्कूल जीरादेई में आप अध्यापन कार्य करते रहे। और इसी दौरान भारतीय स्थल सेना में धर्मशिक्षक के पद पर आपकी नियुक्ति हुई और अगले १८-२० वर्षों तक वहाँ सेवा दी।पाण्डेय जी की काव्य-रचना १९५० से प्रारम्भ हुई और २००८ तक उन्होंने हिन्दी और भोजपुरी के सैकड़ों मर्मस्पर्शी गीतों की रचना की,जिनमें से अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं।उनकी एक और कृति 'हिन्दी की ज्योति रेखा'(व्याकरण)प्रकाशित हुई है।।अभी हाल ही में आपकी एक कृति 'स्वप्न संगिनी' सम्पूर्ण हुई है और छपने वाली है।६०-६५ वर्षों की साहित्य साधना करने के बाद ६ अप्रैल २००८ रविवार को करीब ७४-७५ की अवस्था में आपका देहावसान हुआ.उनकी कुछ हिंदी और भोजपुरी की कवितायेँ पिछले वर्ष कविताकोश में प्रकाशित हुई हैं,जिसके लिए कविताकोश के <b>संपादक जनविजय जी</b> को बहुत बहुत धन्यवाद...........<br />
<br />
<div style="color: orange;"><a href="http://www.kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%80_%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%BE_%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BE_/_%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A5_%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A5%87%E0%A4%AF"><b>मोती बरसा जाता</b></a></div><br />
रिमझिम रिमझिम गगन मगन हो मोती बरसा जाता ।<br />
<br />
शतदल के दल दल पर ढलकर<br />
नयन नयन के तल में पलकर<br />
<br />
बरस- बरस कर तरसे तन को हरित भरित कर जाता ।<br />
<br />
हिलती डुलती लचक डालियाँ<br />
बजा रही हैं मधुर तालियाँ<br />
<br />
बून्दों की फुलझड़ियों में वह,गीत प्रीत का गाता ।<br />
<br />
हृदय- हृदय में तरल प्यास है<br />
प्रिय के आगम का हुलास है<br />
<br />
नभ का नव अनुराग राग इस भूतल तल पर आता ।<br />
<br />
शुभ्रवला का बादल दल में<br />
ज्यों विद्युत् नभ-नव-घन-तल में<br />
<br />
चाव भरे चातक के चित में चोट जगाये जाता ।<br />
<br />
चहल-पहल है महल-महल में<br />
स्वर्ग आ मिला धरती-तल में<br />
<br />
पल-पल में तरुतृण खग-मृग का रूप बदलता जाता ।<br />
<br />
बुझी प्यास संचित धरती की<br />
फली आस पल-पल मरती की<br />
<br />
सुख दुःख में हंसते रहना यह इन्दु बताता ।<br />
<br />
नभ हो उठा निहाल सजल हो<br />
तुहिन बिन्दुमय ज्यों शतदल हो<br />
<br />
शीतल सुरभि समीर चूमकर सिहर- सिहर तन जाता ।<br />
<br />
झूमी अमराई मदमाती<br />
केकी की कल- कल ध्वनि लाती<br />
<br />
अन्तर-तर के तार- तार कीं बादल बरस भिंगोता ।<br />
<br />
भींगी दुनिया भींगा वन- वन<br />
भींग उठा भौंरों का गुँजन<br />
<br />
कुंज- कुंज में कुसुम पुंज में मधुमय स्वर बन जाता ।</div>विभावरी रंजनhttp://www.blogger.com/profile/17929447279673536929noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7553231715256006441.post-85503956236561423992011-01-26T18:57:00.003+05:302011-01-27T09:11:24.765+05:30रामधारी सिंह "दिनकर"रामधारी सिंह "दिनकर" (२३ सितंबर १९०८- २४ अप्रैल १९७४) भारत में हिन्दी के एक प्रमुख लेखक. कवि, निबंधकार थे।राष्ट्र कवि दिनकर आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। बिहार प्रांत के बेगुसराय जिले का सिमरिया घाट कवि दिनकर की जन्मस्थली है। इन्होंने इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से की। साहित्य के रूप में इन्होंने संस्कृत, बंग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का गहन अध्ययन किया था। ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता।<br />
<br />
रामधारी सिंह दिनकर स्वतंत्रता पूर्व के विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतंत्रता के बाद राष्ट्रकवि के नाम से जाने जाते रहे। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रांति की पुकार है, तो दूसरी ओर कोमल श्रृँगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तियों का चरम उत्कर्ष हमें कुरूक्षेत्र और उवर्शी में मिलता है।<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhdWdDYFCx4bRXWKQwAgJgeaW8484mWjjDR1BChgUtkPSv63BBKU0aLockDDLXIMi0tWc_Iw4DpQfvxomkxs7ja8RCBYCSoyBFuHPDlq8AvqiRal0HhgSqSlyerDdZAsLU10cC11zEEbIub/s1600/285px-Rashtra_Kavi_Dinkar.JPG" imageanchor="1" style="clear:right; float:right; margin-left:1em; margin-bottom:1em"><img border="0" height="320" width="249" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhdWdDYFCx4bRXWKQwAgJgeaW8484mWjjDR1BChgUtkPSv63BBKU0aLockDDLXIMi0tWc_Iw4DpQfvxomkxs7ja8RCBYCSoyBFuHPDlq8AvqiRal0HhgSqSlyerDdZAsLU10cC11zEEbIub/s320/285px-Rashtra_Kavi_Dinkar.JPG" /></a></div><br />
<br />
जीवन परिचय<br />
<br />
इनका जन्म २३ सितंबर १९०८ को सिमरिया, मुंगेर, बिहार में हुआ था।पटना विश्वविद्यालय से बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक विद्यालय में अध्यापक हो गए। १९३४ से १९४७ तक बिहार सरकार की सेवा में सब-रजिस्टार और प्रचार विभाग के उपिनदेशक पदों पर कार्य किया। १९५० से १९५२ तक मुजफ्फरपुर कालेज में हिन्दी के विभागाध्यक्ष रहे, भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति के पद पर कार्य किया और इसके बाद भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार बने। उन्हें पदमविभूषण की से भी अलंकृत किया गया। पुस्तक संस्कृति के चार अध्याय के लिये आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा उर्वशी के लिये भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कर प्रदान किये गए। अपनी लेखनी के माध्यम से वह सदा अमर रहेंगे।<br />
<br />
प्रमुख कृतियाँ<br />
रश्मीरथी, ऊर्वशी(ज्ञानपीठ से सम्मानित),हुंकार, संस्कृति के चार अध्याय, परशुराम की प्रतीक्षा, हाहाकार, चक्रव्यूह, आत्मजयी, वाजश्रवा के बहाने।<br />
<br />
<br />
ऊर्वशी को छोड़कर, दिनकरजी की अधिकतर रचनाएं वीर रस से ओतप्रोत है. उनकी महान रचनाओं में रश्मिरथी और परशुराम की प्रतीक्षा शामिल है. भूषण के बाद उन्हें वीर रस का सर्वश्रेष्ठ कवि माना जाता है. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि दिनकरजी गैर-हिंदीभाषियों के बीच हिंदी के सभी कवियों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय थे. उन्होंने कहा कि दिनकरजी अपनी मातृभाषा से प्रेम करने वालों के प्रतीक थे. हरिवंश राय बच्चन ने कहा कि दिनकरजी को एक नहीं, चार ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि उन्हें गद्य, पद्य, भाषा और हिंदी भाषा की सेवा के लिए अलग-अगल ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया जाना चाहिए. रामवृक्ष बेनीपुरी ने कहा कि दिनकरजी ने देश में क्रांतिकारी आंदोलन को स्वर दिया. नामवर सिंह ने कहा कि दिनकरजी अपने युग के सचमुच सूर्य थे. प्रसिद्ध साहित्यकार राजेंद्र यादव ने कहा कि दिनकरजी की रचनाओं ने उन्हें बहुत प्रेरित किया. प्रसिद्ध रचनाकार काशीनाथ सिंह ने कहा कि दिनकरजी राष्ट्रवादी और साम्राज्य-विरोधी कवि थे. उन्होंने सामाजिक और आर्थिक समानता और शोषण के खिलाफ कविताओं की रचना की. एक प्रगतिवादी और मानववादी कवि के रूप में उन्होंने ऐतिहासिक पात्रों और घटनाओं को ओजस्वी और प्रखर शब्दों का तानाबाना दिया.. ज्ञानपीठ से सम्मानित उनकी रचना उर्वशी की कहानी मानवीय प्रेम, वासना और संबंधों के इर्द-गिर्द धूमती है. उर्वशी स्वर्ग परित्यक्ता एक अपसरा की कहानी है. वहीं, कुरुक्षेत्र, महाभारत के शांति-पर्व का कवितारूप है. यह दूसरे विश्वयुद्ध के बाद लिखी गई. वहीं सामधेनी की रचना कवि के सामाजिक चिंतन के अनुरुप हुई है. संस्कृति के चार अध्याय में दिनकर जी ने कहा कि सांस्कृतिक, भाषाई और क्षेत्रीय विविधताओं के बावजूद भारत एक देश है, क्योंकि सारी विविधताओं के बाद भी, हमारी सोच एक जैसी है. दिनकरजी की रचनाओं के कुछ अंश-<br />
<br />
रे रोक युधिष्ठर को न यहां, जाने दे उनको स्वर्ग धीर पर फिरा हमें गांडीव गदा, लौटा दे अर्जुन भीम वीर (हिमालय से)<br />
<br />
क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो उसको क्या जो दंतहीन विषहीन विनीत सरल हो (कुरूक्षेत्र से)<br />
<br />
पत्थर सी हों मांसपेशियां लौहदंड भुजबल अभय नस-नस में हो लहर आग की, तभी जवानी पाती जय (रश्मिरथी से)<br />
<br />
हटो व्योम के मेघ पंथ से स्वर्ग लूटने हम जाते हैं दूध-दूध ओ वत्स तुम्हारा दूध खोजने हम जाते है.<br />
<br />
सच पूछो तो सर में ही बसती दीप्ति विनय की संधि वचन संपूज्य उसी का जिसमें शक्ति विजय की सहनशीलता क्षमा दया को तभी पूजता जग है बल के दर्प चमकता जिसके पीछे जब जगमग है<br />
<br />
सम्मान<br />
<br />
दिनकरजी को उनकी रचना कुरूक्षेत्र के लिए काशी नागरी प्रचारिणी सभा, उत्तरप्रदेश सरकार और भारत सरकार सम्मान मिला. संस्कृति के चार अध्याय के लिए उन्हें 1959 में साहित्य अकादमी से सम्मानित किया गया. भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें 1959 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया. भागलपुर विश्वविद्यालय के तात्कालीन कुलाधिपति और बिहार के राज्यपाल जाकिर हुसैन, जो बाद में भारत के राष्ट्रपति बने, ने उन्हें डॉक्ट्रेट की मानध उपाधि से सम्मानित किया. गुरू महाविद्यालय ने उन्हें विद्या वाचस्पति के लिए चुना. 1968 में राजस्थान विद्यापीठ ने उन्हें साहित्य-चूड़ामणि से सम्मानित किया. वर्ष 1972 में काव्य रचना उर्वशी के लिए उन्हें ज्ञानपीठ सम्मानित किया गया. 1952 में वे राज्यसभा के लिए चुने गए और लगातार तीन बार राज्यसभा के सदस्य रहे.<br />
मरणोपरांत सम्मान<br />
<br />
30 सितंबर 1987 को उनकी 79वीं पुण्यतिथि पर तात्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने उन्हें श्रद्धांजलित दी. 1999 में भारत सरकार ने उनकी स्मृति में डाक टिकट जारी किए. दिनकर जी की स्मृति में केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री प्रियरंजन दास मुंशी ने उनकी जन्म शताब्दी के अवसर, रामधारी सिंह दिनकर- व्यक्तित्व और कृतित्व पुस्तक का विमोचन किया. इस किताब की रचना खगेश्वर ठाकुर ने की और भारत सरकार के प्रकाशन विभाग ने इसका प्रकाशन किया. उनकी जन्म शताब्दी के अवसर पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनकी भव्य प्रतिमा का अनावरण किया और उन्हें फूल मालाएं चढाई. कालीकट विश्वविद्यालय में भी इस अवसर को दो दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया.<br />
<br />
दो न्याय अगर तो आधा दो, और, उसमें भी यदि बाधा हो,<br />
<br />
तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रक्खो अपनी धरती तमाम।<br />
<br />
हम वहीं खुशी से खायेंगे,<br />
<br />
परिजन पर असि न उठायेंगे!<br />
<br />
लेकिन दुर्योधन<br />
<br />
दुर्योधन वह भी दे न सका, आशीष समाज की ले न सका,<br />
<br />
उलटे, हरि को बाँधने चला, जो था असाध्य, साधने चला।<br />
<br />
हरि ने भीषण हुंकार किया, अपना स्वरूप-विस्तार किया,<br />
<br />
डगमग-डगमग दिग्गज डोले, भगवान् कुपित होकर बोले-<br />
<br />
'जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,<br />
<br />
हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।<br />
<br />
यह देख, गगन मुझमें लय है, यह देख, पवन मुझमें लय है,<br />
<br />
मुझमें विलीन झंकार सकल, मुझमें लय है संसार सकल।<br />
<br />
सब जन्म मुझी से पाते हैं,<br />
<br />
फिर लौट मुझी में आते हैं।<br />
<br />
यह देख जगत का आदि-अन्त, यह देख, महाभारत का रण,<br />
<br />
मृतकों से पटी हुई भू है,<br />
<br />
पहचान, कहाँ इसमें तू है।<br />
<br />
(रश्मिरथी से)विभावरी रंजनhttp://www.blogger.com/profile/17929447279673536929noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7553231715256006441.post-5736316478759195272011-01-25T07:49:00.001+05:302011-01-26T18:14:54.536+05:30भूषणभूषण (1613-1705) रीतिकाल के तीन प्रमुख कवियों बिहारी, केशव और भूषण में से एक हैं। रीति काल में जब सब कवि श्रृंगार रस में रचना कर रहे थे, वीर रस में प्रमुखता से रचना कर के भूषण ने अपने को सबसे अलग साबित किया।<br />
<br />
जीवन परिचय<br />
<br />
कविवर भूषण का जीवन विवरण अभी तक संदिग्धावस्था में ही है। उनके जन्म मृत्यु, परिवार आदि के विषय में कुछ भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार भूषण का जन्म संवत 1670 तदनुसार ईस्वी 1613 में हुआ। उनका जन्म स्थान कानपुर जिले में तिकवांपुर नाम का ग्राम बताया जाता है। उनके पिता का नाम रत्नाकर त्रिपाठी था। वे काव्यकुब्ज ब्राह्मण थे।<br />
<br />
भूषण के वास्तविक नाम का ठीक पता नहीं चलता। शिवराज भूषण ग्रंथ के निम्न दोहे के अनुसार भूषण उनकी उपाधि है जो उन्हें चित्रकूट के राज हृदयराम के पुत्र रुद्रशाह ने दी थी -<br />
<br />
कुल सुलंकि चित्रकूट-पति साहस सील-समुद्र।<br />
<br />
कवि भूषण पदवी दई, हृदय राम सुत रुद्र।।<br />
<br />
कहा जाता है कि भूषण कवि मतिराम और चिंतामणी के भाई थे। एक दिन भाभी के ताना देने पर उन्होंने घर छोड़ दिया और कई आश्रम में गए। यहां आश्रय प्राप्त करने के बाद शिवाजी के आश्रम में चले गए और अंत तक वहीं रहे।<br />
<br />
पन्ना नरेश छत्रसाल से भी भूषण का संबंध रहा। वास्तव में भूषण केवल शिवाजी और छत्रसाल इन दो राजाओं के ही सच्चे प्रशंसक थे। उन्होंने स्वयं ही स्वीकार किया है-<br />
<br />
और राव राजा एक मन में न ल्याऊं अब।<br />
<br />
साहू को सराहों कै सराहौं छत्रसाल को।।<br />
<br />
संवत 1772 तदनुसार ईस्वी 1705 में भूषण परलोकवासी हो गए।<br />
रचनाएं<br />
<br />
* शिवराज भूषण,<br />
* शिवा बावनी और<br />
* छत्रसाल दर्शक - ये तीन भूषण के प्रसिध्द काव्य ग्रंथ हैं। <br />
<br />
शिवराज भूषण में रीति कालीन प्रवृत्ति के अनुसार अलंकारों का विवेचन किया गया है। शिवा बावनी में शिवाजी के तथा छत्रसाल दशक में छत्रसाल के वीरतापूर्ण कार्यों का वर्णन है।<br />
<br />
काव्यगत विशेषताएं<br />
<br />
भूषण का युग असल में हिदुओं का युग था और निरीह हिंदू जनता अत्याचारों से पीड़ित थी। भूषण ने इस अत्याचार के विरुध्द आवाज़ उठाई तथा निराश हिंदू जन समुदाय को आशा का संबल प्रदान कर उसे संघर्ष के लिए उत्साहित किया।<br />
युध्दों का सजीव चित्र<br />
<br />
भूषण का युध्द वर्णन बड़ा ही सजीव और स्वाभाविक है। युध्द के उत्साह से युक्त सेनाओं का रण प्रस्थान युध्द के बाजों का घोर गर्जन, रण भूमि में हथियारों का घात-प्रतिघात, शूर वीरों का पराक्रम और कायरों की भयपूर्ण स्थिति आदि दृश्यों का चित्रण अत्यंत प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया गया है। शिवाजी की सेना का रण के लिए प्रस्थान करते समय का एक चित्र देखिए -<br />
<br />
साजि चतुरंग वीर रंग में तुरंग चढ़ि।<br />
<br />
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत है।।<br />
<br />
भूषन भनत नाद विहद नगारन के।<br />
<br />
नदी नद मद गैबरन के रलत हैं।।<br />
<br />
ऐल फैल खैल भैल खलक में गैल गैल,<br />
<br />
गजन की ठेल-पेल सैल उसलत हैं।<br />
<br />
तारा सों तरनि घूरि धरा में लIगत जिम,<br />
<br />
धरा पर पारा पारावार ज्यों हलत हैं।<br />
<br />
भाषा<br />
<br />
भूषण ने अपने काव्य की रचना ब्रज भाषा में की। वे सर्वप्रथम कवि हैं जिन्होंने ब्रज भाषा को वीर रस की कविता के लिए अपनाया। वीर रस के अनुकूल उनकी ब्रज भाषा में सर्वत्र ही आज के दर्शन होते हैं।<br />
<br />
भूषण की ब्रज भाषा में उर्दू, अरबी, फ़ारसी आदि भाषाओं के शब्दों की भरमार है। जंग, आफ़ताब, फ़ौज आदि शब्दों का खुल कर प्रयोग हुआ है। शब्दों का चयन वीर रस के अनुकूल है। मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग सुंदरता से हुआ है।<br />
<br />
व्याकरण की अव्यवस्था, शब्दों को तोड़-मरोड़, वाक्य विन्यास की गड़बड़ी आदि के होते हुए भी भूषण की भाषा बड़ी सशक्त और प्रवाहमयी है। हां, प्राकृत और अपभ्रंश के शब्द प्रयुक्त होने से वह कुछ क्लिष्ट अवश्य हो गई है।<br />
शैली<br />
<br />
भूषण की शैली अपने विषय के अनुकूल है। वह ओजपूर्ण है और वीर रस की व्यंजना के लिए सर्वथा उपयुक्त है। अतः उनकी शैली को वीर रस की ओज पूर्ण शैली कहा जा सकता है। प्रभावोत्पादकता, चित्रोपमता, और सरसता भूषण की शैली की मुख्य विशेषताएं हैं।<br />
रस<br />
<br />
भूषण की कविता की वीर रस के वर्णन में भूषण हिंदी साहित्य में अद्वितीय कवि हैं। वीर के साथ रौद्र भयानक-वीभत्स आदि रसों को भी स्थान मिला है। भूषण ने श्रृंगार रस की भी कुछ कविताएं लिखी हैं, किंतु श्रृंगार रस के वर्णन ने भी उनकी वीर रस की एवं रुचि का स्पष्ट प्रभाव दीख पड़ता है -<br />
<br />
न करु निरादर पिया सौ मिल सादर ये आए वीर बादर बहादुर मदन के<br />
छंद<br />
<br />
भूषण की छंद योजना रस के अनुकूल है। दोहा, कवित्ता, सवैया, छप्पय आदि उनके प्रमुख छंद हैं।<br />
अलंकार<br />
<br />
रीति कालीन कवियों की भांति भूषण ने अलंकारों को अत्यधिक महत्व दिया है। उनकी कविता में प्रायः सभी अलंकार पाए जाते हैं। अर्थालंकारों की उपेक्षा शब्दालंकारों को प्रधानता मिली है। यमक अलंकार का एक उदाहरण देखिए-<br />
<br />
ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहन वारी,<br />
<br />
ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहती है।<br />
<br />
साहित्य में स्थान<br />
<br />
भूषण का हिंदी साहित्य में एक विशिष्ट स्थान हैं। वे वीर रस के अद्वितीय कवि थे। रीति कालीन कवियों में वे पहले कवि थे जिन्होंने हास-विलास की अपेक्षा राष्ट्रीय-भावना को प्रमुखता प्रदान की। उन्होंने अपने काव्य द्वारा तत्कालीन असहाय हिंदू समाज की वीरता का पाठ पढ़ाया और उसके समक्ष रक्षा के लिए एक आदर्श प्रस्तुत किया। वे निस्संदेह राष्ट्र की अमर धरोहर हैं।<br />
सारांश<br />
<br />
* जन्म संवत तथा स्थान - 1613 तिकवांपुर जिला कानपुर।<br />
* पिता - रत्नाकर त्रिपाठी।<br />
* मृत्यु - संवत 1705।<br />
* ग्रंथ - शिवराज भूषण, शिवा बावनी, छत्रसाल दशक।<br />
* वर्ण्य विषय - शिवाजी तथा छत्रसाल के वीरतापूर्ण कार्यों का वर्णन।<br />
* भाषा - ब्रज भाषा जिसमें अरबी, फ़ारसी, तुर्की बुंदेलखंडी और खड़ी बोली के शब्द मिले हुए हैं। व्याकरण की अशुध्दियां हैं और शब्द बिगड़ गए हैं।<br />
* शैली - वीर रस की ओजपूर्ण शैली।<br />
* छंद - कवित्त, सवैया।<br />
* रस - प्रधानता वीर, भयानक, वीभत्स, रौद्र और श्रृंगार भी है।<br />
* अलंकार - प्रायः सभी अलंकार हैं। <br />
<br />
एक और टिप्पणी<br />
<br />
भूषण का जन्म (1613-1715 ई.) कानपुर जिले के तिकवापुर ग्राम में हुआ था। ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। कहते हैं भूषण निकम्मे थे। एक बार नमक मांगने पर भाभी ने ताना दिया कि नमक कमाकर लाए हो? उसी समय इन्होंने घर छोड दिया और कहा 'कमाकर लाएंगे तभी खाएंगे। प्रसिध्द है कि कालांतर में इन्होंने एक लाख रुपए का नमक भाभी को भिजवाया। हिन्दू जाति का गौरव बढे और उन्नति हो यह इनकी अभिलाषा थी। इस कारण वीर शिवाजी को इन्होंने अपना आदर्श बनाया तथा उनकी प्रशंसा में कविता लिखी। चित्रकूट नरेश के पुत्र रुद्र सोलंकी ने भी इनकी कविता सराही और इन्हें 'भूषण की उपाधि दी। इनके प्रसिध्द ग्रंथ हैं- 'शिवराज भूषण, 'शिवा बावनी तथा 'छत्रसाल-दशक, जिनमें वीर, रौद्र, भयानक और वीभत्स रसों का प्रभावशाली चित्रण है। 'भूषण रीतिकाल के एकमात्र कवि हैं, जिन्होंने श्रृंगारिकता से हटकर वीरता और देशप्रेम के वर्णन से कविता को गौरव प्रदान किया।<br />
<br />
कविताएं<br />
<br />
इन्द्र जिमि जंभ पर, बाडब सुअंभ पर, रावन सदंभ पर, रघुकुल राज हैं।<br />
<br />
पौन बारिबाह पर, संभु रतिनाह पर, ज्यौं सहस्रबाह पर राम-द्विजराज हैं॥<br />
<br />
दावा द्रुम दंड पर, चीता मृगझुंड पर, 'भूषन वितुंड पर, जैसे मृगराज हैं।<br />
<br />
तेज तम अंस पर, कान्ह जिमि कंस पर, त्यौं मलिच्छ बंस पर, सेर शिवराज हैं॥<br />
<br />
ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहन वारी, ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहाती हैं।<br />
<br />
कंद मूल भोग करैं, कंद मूल भोग करैं, तीन बेर खातीं, ते वे तीन बेर खाती हैं॥<br />
<br />
भूषन शिथिल अंग, भूषन शिथिल अंग, बिजन डुलातीं ते वे बिजन डुलाती हैं।<br />
<br />
'भूषन भनत सिवराज बीर तेरे त्रास, नगन जडातीं ते वे नगन जडाती हैं॥<br />
<br />
छूटत कमान और तीर गोली बानन के, मुसकिल होति मुरचान की ओट मैं।<br />
<br />
ताही समय सिवराज हुकुम कै हल्ला कियो, दावा बांधि परा हल्ला बीर भट जोट मैं॥<br />
<br />
'भूषन' भनत तेरी हिम्मति कहां लौं कहौं किम्मति इहां लगि है जाकी भट झोट मैं।<br />
<br />
ताव दै दै मूंछन, कंगूरन पै पांव दै दै, अरि मुख घाव दै-दै, कूदि परैं कोट मैं॥<br />
<br />
बेद राखे बिदित, पुरान राखे सारयुत, रामनाम राख्यो अति रसना सुघर मैं।<br />
<br />
हिंदुन की चोटी, रोटी राखी हैं सिपाहिन की, कांधे मैं जनेऊ राख्यो, माला राखी गर मैं॥<br />
<br />
मीडि राखे मुगल, मरोडि राखे पातसाह, बैरी पीसि राखे, बरदान राख्यो कर मैं।<br />
<br />
राजन की हद्द राखी, तेग-बल सिवराज, देव राखे देवल, स्वधर्म राख्यो घर मैं॥ <br />
<br />
************************************************************<br />
<br />
साजि चतुरंग वीर रंग में तुरंग चढ़ि।<br />
<br />
सरजा सिवाजी जंग जीवन चलत है।।<br />
<br />
भूषन भनत नाद विहद नगारन के।<br />
<br />
नदी नद मद गैबरन के रलत हैं।।<br />
<br />
ऐल फैल खैल भैल खलक में गैल गैल,<br />
<br />
गाजन की ठेल-पेल सैल उसलत हैं।<br />
<br />
तारा सों तरनि घूरि धरा में लगत जिम,<br />
<br />
धारा पर पारा पारावार ज्यों हलत हैं।विभावरी रंजनhttp://www.blogger.com/profile/17929447279673536929noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-7553231715256006441.post-43403027073398908912010-04-22T12:27:00.005+05:302010-04-25T12:02:57.419+05:30कबीर<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgFORjzSF4ct5Xvs1bxodUFoGiYtgMGfSpeEUPjxFDR-rMNfGBqF-w5UcHqNHzQ7IkYr2kZbb-oyJPStocRRhrsrNUwURT2K1vorrAy1of9HPU18dpbv3eyEJTzQzYKP9jRP8rvs5L87oCN/s1600/kabir.gif"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 155px; height: 200px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgFORjzSF4ct5Xvs1bxodUFoGiYtgMGfSpeEUPjxFDR-rMNfGBqF-w5UcHqNHzQ7IkYr2kZbb-oyJPStocRRhrsrNUwURT2K1vorrAy1of9HPU18dpbv3eyEJTzQzYKP9jRP8rvs5L87oCN/s200/kabir.gif" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5462855799604747042" /></a><br />
<br />
कबीर सन्त कवि और समाज सुधारक थे। ये सिकन्दर लोदी के समकालीन थे। कबीर का अर्थ अरबी भाषा में महान होता है। कबीरदास भारत के भक्ति काव्य परंपरा के महानतम कवियों में से एक थे। भारत में धर्म, भाषा या संस्कृति किसी की भी चर्चा बिना कबीर की चर्चा के अधूरी ही रहेगी। कबीरपंथी, एक धार्मिक समुदाय जो कबीर के सिद्धांतों और शिक्षाओं को अपने जीवन शैली का आधार मानते हैं,<br />
<br />
<span style="font-weight:bold;">जीवन</span><br />
<br />
काशी के इस अक्खड़, निडर एवं संत कवि का जन्म लहरतारा के पास सन् १३९८ में ज्येष्ठ पूर्णिमा को हुआ। जुलाहा परिवार में पालन पोषण हुआ, संत रामानंद के शिष्य बने और अलख जगाने लगे। कबीर सधुक्कड़ी भाषा में किसी भी सम्प्रदाय और रूढ़ियों की परवाह किये बिना खरी बात कहते थे। हिंदू-मुसलमान सभी समाज में व्याप्त रूढ़िवाद तथा कट्टरपंथ का खुलकर विरोध किया। कबीर की वाणी उनके मुखर उपदेश उनकी साखी, रमैनी, बीजक, बावन-अक्षरी, उलटबासी में देखें जा सकते हैं। गुरु ग्रंथ साहब में उनके २०० पद और २५० साखियां हैं। काशी में प्रचलित मान्यता है कि जो यहॉ मरता है उसे मोक्ष प्राप्त होता है। रूढ़ि के विरोधी कबीर को यह कैसे मान्य होता। काशी छोड़ मगहर चले गये और सन् १५१८ के आस पास वहीं देह त्याग किया। मगहर में कबीर की समाधि है जिसे हिन्दू मुसलमान दोनों पूजते हैं।<br />
<span style="font-weight:bold;">मतभेद भरा जीवन</span><br />
<br />
<br />
हिंदी साहित्य में कबीर का व्यक्तित्व अनुपम है। गोस्वामी तुलसीदास को छोड़ कर इतना महिमामण्डित व्यक्तित्व कबीर के सिवा अन्य किसी का नहीं है। कबीर की उत्पत्ति के संबंध में अनेक किंवदन्तियाँ हैं। कुछ लोगों के अनुसार वे जगद्गुरु रामानन्द स्वामी के आशीर्वाद से काशी की एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। ब्राह्मणी उस नवजात शिशु को लहरतारा ताल के पास फेंक आयी। उसे नीरु नाम का जुलाहा अपने घर ले आया। उसी ने उसका पालन-पोषण किया। बाद में यही बालक कबीर कहलाया। कतिपय कबीर पन्थियों की मान्यता है कि कबीर की उत्पत्ति काशी में लहरतारा तालाब में उत्पन्न कमल के मनोहर पुष्प के ऊपर बालक के रूप में हुई। एक प्राचीन ग्रंथ के अनुसार किसी योगी के औरस तथा प्रतीति नामक देवाङ्गना के गर्भ से भक्तराज प्रहलाद ही संवत् १४५५ ज्येष्ठ शुक्ल १५ को कबीर के रूप में प्रकट हुए थे।<br />
<br />
कुछ लोगों का कहना है कि वे जन्म से मुसलमान थे और युवावस्था में स्वामी रामानन्द के प्रभाव से उन्हें हिंदू धर्म की बातें मालूम हुईं। एक दिन, एक पहर रात रहते ही कबीर पञ्चगंगा घाट की सीढ़ियों पर गिर पड़े। रामानन्द जी गंगास्नान करने के लिये सीढ़ियाँ उतर रहे थे कि तभी उनका पैर कबीर के शरीर पर पड़ गया। उनके मुख से तत्काल 'राम-राम' शब्द निकल पड़ा। उसी राम को कबीर ने दीक्षा-मन्त्र मान लिया और रामानन्द जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया।<br />
<br />
कबीर के ही शब्दों में- 'हम कासी में प्रकट भये हैं, रामानन्द चेताये'।<br />
<br />
अन्य जनश्रुतियों से ज्ञात होता है कि कबीर ने हिंदू-मुसलमान का भेद मिटा कर हिंदू-भक्तों तथा मुसलमान फकीरों का सत्संग किया और दोनों की अच्छी बातों को हृदयंगम कर लिया।<br />
<br />
जनश्रुति के अनुसार उन्हें एक पुत्र कमाल तथा पुत्री कमाली थी। इतने लोगों की परवरिश करने के लिये उन्हें अपने करघे पर काफी काम करना पड़ता था। ११९ वर्ष की अवस्था में उन्होंने मगहर में देह त्याग किया।<br />
<span style="font-weight:bold;">धर्म के प्रति</span><br />
<br />
साधु संतों का तो घर में जमावड़ा रहता ही था। कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे- 'मसि कागद छूवो नहीं, कलम गही नहिं हाथ।'उन्होंने स्वयं ग्रंथ नहीं लिखे, मुँह से भाखे और उनके शिष्यों ने उसे लिख लिया। आप के समस्त विचारों में रामनाम की महिमा प्रतिध्वनित होती है। वे एक ही ईश्वर को मानते थे और कर्मकाण्ड के घोर विरोधी थे। अवतार, मूर्त्ति, रोज़ा, ईद, मसजिद, मंदिर आदि को वे नहीं मानते थे।<br />
<br />
कबीर के नाम से मिले ग्रंथों की संख्या भिन्न-भिन्न लेखों के अनुसार भिन्न-भिन्न है। एच.एच. विल्सन के अनुसार कबीर के नाम पर आठ ग्रंथ हैं। विशप जी.एच. वेस्टकॉट ने कबीर के ८४ ग्रंथों की सूची प्रस्तुत की तो रामदास गौड़ ने 'हिंदुत्व' में ७१ पुस्तकें गिनायी हैं।<br />
<span style="font-weight:bold;">वाणी संग्रह</span><br />
<br />
कबीर की वाणी का संग्रह 'बीजक' के नाम से प्रसिद्ध है। इसके तीन भाग हैं- रमैनी, सबद और साखी यह पंजाबी, राजस्थानी, खड़ी बोली, अवधी, पूरबी, ब्रजभाषा आदि कई भाषाओं की खिचड़ी है।कबीर परमात्मा को मित्र, माता, पिता और पति के रूप में देखते हैं।यही तो मनुष्य के सर्वाधिक निकट रहते हैं।<br />
<br />
वे कभी कहते हैं-<br />
<br />
'हरिमोर पिउ, मैं राम की बहुरिया' तो कभी कहते हैं, 'हरि जननी मैं बालक तोरा'।<br />
<br />
और कभी "बडा हुआ तो क्या हुआ जैसै"<br />
<br />
उस समय हिंदू जनता पर मुस्लिम आतंक का कहर छाया हुआ था। कबीर ने अपने पंथ को इस ढंग से सुनियोजित किया जिससे मुस्लिम मत की ओर झुकी हुई जनता सहज ही इनकी अनुयायी हो गयी। उन्होंने अपनी भाषा सरल और सुबोध रखी ताकि वह आम आदमी तक पहुँच सके। इससे दोनों सम्प्रदायों के परस्पर मिलन में सुविधा हुई। इनके पंथ मुसलमान-संस्कृति और गोभक्षण के विरोधी थे। कबीर को शांतिमय जीवन प्रिय था और वे अहिंसा, सत्य, सदाचार आदि गुणों के प्रशंसक थे। अपनी सरलता, साधु स्वभाव तथा संत प्रवृत्ति के कारण आज विदेशों में भी उनका समादर हो रहा है।<br />
<br />
वृद्धावस्था में यश और कीर्त्ति की मार ने उन्हें बहुत कष्ट दिया। उसी हालत में उन्होंने बनारस छोड़ा और आत्मनिरीक्षण तथा आत्मपरीक्षण करने के लिये देश के विभिन्न भागों की यात्राएँ कीं इसी क्रम में वे कालिंजर जिले के पिथौराबाद शहर में पहुँचे। वहाँ रामकृष्ण का छोटा सा मन्दिर था। वहाँ के संत भगवान् गोस्वामी के जिज्ञासु साधक थे किंतु उनके तर्कों का अभी तक पूरी तरह समाधान नहीं हुआ था। संत कबीर से उनका विचार-विनिमय हुआ। कबीर की एक साखी ने उन के मन पर गहरा असर किया-<br />
<br />
'बन ते भागा बिहरे पड़ा, करहा अपनी बान। करहा बेदन कासों कहे, को करहा को जान।।'<br />
<br />
वन से भाग कर बहेलिये के द्वारा खोये हुए गड्ढे में गिरा हुआ हाथी अपनी व्यथा किस से कहे ?<br />
<br />
सारांश यह कि धर्म की जिज्ञासा सें प्रेरित हो कर भगवान गोसाई अपना घर छोड़ कर बाहर तो निकल आये और हरिव्यासी सम्प्रदाय के गड्ढे में गिर कर अकेले निर्वासित हो कर असंवाद्य स्थिति में पड़ चुके हैं।<br />
<br />
मूर्त्ति पूजा को लक्ष्य करते हुए उन्होंने एक साखी हाजिर कर दी-<br />
<br />
पाहन पूजे हरि मिलैं, तो मैं पूजौं पहार। वा ते तो चाकी भली, पीसी खाय संसार।।<br />
<br />
<span style="font-weight:bold;">कबीर के राम</span><br />
<br />
कबीर के राम तो अगम हैं और संसार के कण-कण में विराजते हैं। कबीर के राम इस्लाम के एकेश्वरवादी, एकसत्तावादी खुदा भी नहीं हैं। इस्लाम में खुदा या अल्लाह को समस्त जगत एवं जीवों से भिन्न एवं परम समर्थ माना जाता है। पर कबीर के राम परम समर्थ भले हों, लेकिन समस्त जीवों और जगत से भिन्न तो कदापि नहीं हैं। बल्कि इसके विपरीत वे तो सबमें व्याप्त रहने वाले रमता राम हैं। वह कहते हैं<br />
व्यापक ब्रह्म सबनिमैं एकै, को पंडित को जोगी। रावण-राव कवनसूं कवन वेद को रोगी।<br />
कबीर राम की किसी खास रूपाकृति की कल्पना नहीं करते, क्योंकि रूपाकृति की कल्पना करते ही राम किसी खास ढाँचे (फ्रेम) में बँध जाते, जो कबीर को किसी भी हालत में मंजूर नहीं। कबीर राम की अवधारणा को एक भिन्न और व्यापक स्वरूप देना चाहते थे। इसके कुछ विशेष कारण थे, जिनकी चर्चा हम इस लेख में आगे करेंगे। किन्तु इसके बावजूद कबीर राम के साथ एक व्यक्तिगत पारिवारिक किस्म का संबंध जरूर स्थापित करते हैं। राम के साथ उनका प्रेम उनकी अलौकिक और महिमाशाली सत्ता को एक क्षण भी भुलाए बगैर सहज प्रेमपरक मानवीय संबंधों के धरातल पर प्रतिष्ठित है।<br />
कबीर नाम में विश्वास रखते हैं, रूप में नहीं। हालाँकि भक्ति-संवेदना के सिद्धांतों में यह बात सामान्य रूप से प्रतिष्ठित है कि ‘नाम रूप से बढ़कर है’, लेकिन कबीर ने इस सामान्य सिद्धांत का क्रांतिधर्मी उपयोग किया। कबीर ने राम-नाम के साथ लोकमानस में शताब्दियों से रचे-बसे संश्लिष्ट भावों को उदात्त एवं व्यापक स्वरूप देकर उसे पुराण-प्रतिपादित ब्राह्मणवादी विचारधारा के खाँचे में बाँधे जाने से रोकने की कोशिश की।<br />
कबीर के राम निर्गुण-सगुण के भेद से परे हैं। दरअसल उन्होंने अपने राम को शास्त्र-प्रतिपादित अवतारी, सगुण, वर्चस्वशील वर्णाश्रम व्यवस्था के संरक्षक राम से अलग करने के लिए ही ‘निर्गुण राम’ शब्द का प्रयोग किया–‘निर्गुण राम जपहु रे भाई।’ इस ‘निर्गुण’ शब्द को लेकर भ्रम में पड़ने की जरूरत नहीं। कबीर का आशय इस शब्द से सिर्फ इतना है कि ईश्वर को किसी नाम, रूप, गुण, काल आदि की सीमाओं में बाँधा नहीं जा सकता। जो सारी सीमाओं से परे हैं और फिर भी सर्वत्र हैं, वही कबीर के निर्गुण राम हैं। इसे उन्होंने ‘रमता राम’ नाम दिया है। अपने राम को निर्गुण विशेषण देने के बावजूद कबीर उनके साथ मानवीय प्रेम संबंधों की तरह के रिश्ते की बात करते हैं। कभी वह राम को माधुर्य भाव से अपना प्रेमी या पति मान लेते हैं तो कभी दास्य भाव से स्वामी। कभी-कभी वह राम को वात्सल्य मूर्ति के रूप में माँ मान लेते हैं और खुद को उनका पुत्र। निर्गुण-निराकार ब्रह्म के साथ भी इस तरह का सरस, सहज, मानवीय प्रेम कबीर की भक्ति की विलक्षणता है। यह दुविधा और समस्या दूसरों को भले हो सकती है कि जिस राम के साथ कबीर इतने अनन्य, मानवीय संबंधपरक प्रेम करते हों, वह भला निर्गुण कैसे हो सकते हैं, पर खुद कबीर के लिए यह समस्या नहीं है।<br />
वह कहते भी हैं<br />
“संतौ, धोखा कासूं कहिये। गुनमैं निरगुन, निरगुनमैं गुन, बाट छांड़ि क्यूं बहिसे!” नहीं है।<br />
<br />
<br />
प्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन ने कबीर के राम एवं कबीर की साधना के संबंध में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा है : " कबीर का सारा जीवन सत्य की खोज तथा असत्य के खंडन में व्यतीत हुआ। कबीर की साधना ‘‘मानने से नहीं, ‘‘जानने से आरम्भ होती है। वे किसी के शिष्य नहीं, रामानन्द द्वारा चेताये हुए चेला हैं।उनके लिए राम रूप नहीं है, दशरथी राम नहीं है, उनके राम तो नाम साधना के प्रतीक हैं। उनके राम किसी सम्प्रदाय, जाति या देश की सीमाओं में कैद नहीं है। प्रकृति के कण-कण में, अंग-अंग में रमण करने पर भी जिसे अनंग स्पर्श नहीं कर सकता, वे अलख, अविनाशी, परम तत्व ही राम हैं। उनके राम मनुष्य और मनुष्य के बीच किसी भेद-भाव के कारक नहीं हैं। वे तो प्रेम तत्व के प्रतीक हैं। भाव से ऊपर उठकर महाभाव या प्रेम के आराध्य हैं ः-<br />
<br />
‘प्रेम जगावै विरह को, विरह जगावै पीउ, पीउ जगावै जीव को, जोइ पीउ सोई जीउ' - जो पीउ है, वही जीव है। इसी कारण उनकी पूरी साधना ‘‘हंस उबारन आए की साधना है। इस हंस का उबारना पोथियों के पढ़ने से नहीं हो सकता, ढाई आखर प्रेम के आचरण से ही हो सकता है। धर्म ओढ़ने की चीज नहीं है, जीवन में आचरण करने की सतत सत्य साधना है। उनकी साधना प्रेम से आरम्भ होती है। इतना गहरा प्रेम करो कि वही तुम्हारे लिए परमात्मा हो जाए। उसको पाने की इतनी उत्कण्ठा हो जाए कि सबसे वैराग्य हो जाए, विरह भाव हो जाए तभी उस ध्यान समाधि में पीउ जाग्रत हो सकता है। वही पीउ तुम्हारे अर्न्तमन में बैठे जीव को जगा सकता है। जोई पीउ है सोई जीउ है। तब तुम पूरे संसार से प्रेम करोगे, तब संसार का प्रत्येक जीव तुम्हारे प्रेम का पात्र बन जाएगा। सारा अहंकार, सारा द्वेष दूर हो जाएगा। फिर महाभाव जगेगा। इसी महाभाव से पूरा संसार पिउ का घर हो जाता है।<br />
<br />
सूरज चन्द्र का एक ही उजियारा, सब यहि पसरा ब्रह्म पसारा।<br />
<br />
जल में कुम्भ, कुम्भ में जल है, बाहर भीतर पानी<br />
<br />
फूटा कुम्भ जल जलहीं समाना, यह तथ कथौ गियानी।"<br />
<br />
माया महा ठगनी हम जानी।।<br />
<br />
तिरगुन फांस लिए कर डोले<br />
<br />
बोले मधुरे बानी।।<br />
<br />
<br />
<br />
केसव के कमला वे बैठी<br />
<br />
शिव के भवन भवानी।।<br />
<br />
पंडा के मूरत वे बैठीं<br />
<br />
तीरथ में भई पानी।।<br />
<br />
<br />
<br />
योगी के योगन वे बैठी<br />
<br />
राजा के घर रानी।।<br />
<br />
काहू के हीरा वे बैठी<br />
<br />
काहू के कौड़ी कानी।।<br />
<br />
<br />
<br />
भगतन की भगतिन वे बैठी<br />
<br />
बृह्मा के बृह्माणी।।<br />
<br />
कहे कबीर सुनो भई साधो<br />
<br />
यह सब अकथ कहानी।।<br />
<br />
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साहिर लुधियानवी साहब(1921-1980): एक प्रसिद्ध शायर तथा गीतकार थे । इनका जन्म लुधियाना में हुआ था और इनकी कर्मभूमि लाहौर (चार उर्दू पत्रिकाओं का सम्पादन, 1948 तक) तथा बंबई (1949 के बाद) रही थी ।<br />
<br />
<br />
साहिर लुधियानवी का असली नाम अब्दुल हयी साहिर है। उनका जन्म 8 मार्च 1921 में लुधियाना के एक जागीरदार घराने में हुआ था। हँलांकि इनके पिता बहुत धनी थे पर माता-पिता में अलगाव होने के कारण उन्हें माता के साथ रहना पड़ा और गरीबी में गुजर करना पड़ा। साहिर की शिक्षा लुधियाना के खालसा हाई स्कूल में हुई। सन् 1939 में जब वे गव्हर्नमेंट कालेज के विद्यार्थी थे अमृता प्रीतम से उनका प्रेम हुआ जो कि असफल रहा । कॉलेज़ के दिनों में वे अपने शेरों के लिए ख्यात हो गए थे और अमृता इनकी प्रशंसक । लेकिन अमृता के घरवालों को ये रास नहीं आया क्योंकि एक तो साहिर मुस्लिम थे और दूसरे गरीब । बाद में अमृता के पिता के कहने पर उन्हें कालेज से निकाल दिया गया। जीविका चलाने के लिये उन्होंने तरह तरह की छोटी-मोटी नौकरियाँ कीं।<br />
<br />
सन् 1943 में साहिर लाहौर आ गये और उसी वर्ष उन्होंने अपनी पहली कविता संग्रह तल्खियाँ छपवायी। 'तल्खियाँ' के प्रकाशन के बाद से ही उन्हें ख्याति प्राप्त होने लग गई। सन् 1945 में वे प्रसिद्ध उर्दू पत्र अदब-ए-लतीफ़ और शाहकार (लाहौर) के सम्पादक बने। बाद में वे द्वैमासिक पत्रिका सवेरा के भी सम्पादक बने और इस पत्रिका में उनकी किसी रचना को सरकार के विरुद्ध समझे जाने के कारण पाकिस्तान सरकार ने उनके खिलाफ वारण्ट जारी कर दिया। उनके विचार साम्यवादी थे । सन् 1949 में वे दिल्ली आ गये। कुछ दिनों दिल्ली में रहकर वे बंबई (वर्तमान मुंबई) आ गये जहाँ पर व उर्दू पत्रिका शाहराह और प्रीतलड़ी के सम्पादक बने।<br />
<br />
फिल्म आजादी की राह पर (1949) के लिये उन्होंने पहली बार गीत लिखे किन्तु प्रसिद्धि उन्हें फिल्म नौजवान, जिसके संगीतकार सचिनदेव बर्मन थे, के लिये लिखे गीतों से मिली। फिल्म नौजवान का गाना ठंडी हवायें लहरा के आयें ..... बहुत लोकप्रिय हुआ और आज तक है। बाद में साहिर लुधियानवी ने बाजी, प्यासा, फिर सुबह होगी, कभी कभी जैसे लोकप्रिय फिल्मों के लिये गीत लिखे। सचिनदेव बर्मन के अलावा एन. दत्ता, शंकर जयकिशन, खैयाम आदि संगीतकारों ने उनके गीतों की धुनें बनाई हैं।<br />
<br />
59 वर्ष की अवस्था में 25 अक्टूबर 1980 को दिल का दौरा पड़ने से साहिर लुधियानवी का निधन हो गया।<br />
<br />
उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने जितना ध्यान औरों पर दिया उतना खुद पर नहीं । वे एक नास्तिक थे तथा उन्होंने आजादी के बाद अपने कई हिन्दू तथा सिख मित्रों की कमी महसूस की जो लाहौर में थे । उनको जीवन में दो प्रेम असफलता मिली - पहला कॉलेज के दिनों में अमृता प्रीतम के साथ जब अमृता के घरवालों ने उनकी शादी न करने का फैसला ये सोचकर लिया कि साहिर एक तो मुस्लिम हैं दूसरे ग़रीब, और दूसरी सुधा मल्होत्रा से । वे आजीवन अविवाहित रहे तथा उनसठ वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया । उनके जीवन की तल्ख़ियां (कटुता) इनके लिखे शेरों में झलकती है । परछाईयाँ नामक कविता में उन्होंने अपने गरीब प्रेमी के जीवन की तरद्दुद का चित्रण किया है -<br />
<br />
जवान रात के सीने पे दूधिया आँचल<br />
<br />
मचल रहा है किसी ख्वाबे-मरमरीं की तरह<br />
<br />
हसीन फूल, हसीं पत्तियाँ, हसीं शाखें<br />
<br />
लचक रही हैं किसी जिस्मे-नाज़नीं की तरह<br />
<br />
फ़िज़ा में घुल से गए हैं उफ़क के नर्म खुतूत<br />
<br />
ज़मीं हसीन है, ख्वाबों की सरज़मीं की तरह<br />
<br />
<br />
तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरतीं हैं<br />
<br />
कभी गुमान की सूरत कभी यकीं की तरह<br />
<br />
वे पेड़ जिन के तले हम पनाह लेते थे<br />
<br />
खड़े हैं आज भी साकित किसी अमीं की तरह<br />
<br />
<br />
इन्हीं के साए में फिर आज दो धड़कते दिल<br />
<br />
खामोश होठों से कुछ कहने-सुनने आए हैं<br />
<br />
न जाने कितनी कशाकश से कितनी काविश से<br />
<br />
ये सोते-जागते लमहे चुराके लाए हैं<br />
<br />
<br />
यही फ़िज़ा थी, यही रुत, यही ज़माना था<br />
<br />
यहीं से हमने मुहब्बत की इब्तिदा की थी<br />
<br />
धड़कते दिल से लरज़ती हुई निगाहों से<br />
<br />
हुजूरे-ग़ैब में नन्हीं सी इल्तिजा की थी<br />
<br />
कि आरज़ू के कंवल खिल के फूल हो जायें<br />
<br />
दिलो-नज़र की दुआयें कबूल हो जायें<br />
<br />
तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैं<br />
<br />
<br />
तुम आ रही हो ज़माने की आँख से बचकर<br />
<br />
नज़र झुकाये हुए और बदन चुराए हुए<br />
<br />
खुद अपने कदमों की आहट से, झेंपती, डरती,<br />
<br />
खुद अपने साये की जुंबिश से खौफ खाए हुए<br />
<br />
तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैं<br />
<br />
रवाँ है छोटी-सी कश्ती हवाओं के रुख पर<br />
<br />
नदी के साज़ पे मल्लाह गीत गाता है<br />
<br />
तुम्हारा जिस्म हर इक लहर के झकोले से<br />
<br />
मेरी खुली हुई बाहों में झूल जाता है<br />
<br />
तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैं<br />
<br />
<br />
<span style="font-weight:bold;">मैं फूल टाँक रहा हूँ तुम्हारे जूड़े में<br />
<br />
तुम्हारी आँख मुसर्रत से झुकती जाती है<br />
<br />
न जाने आज मैं क्या बात कहने वाला हूँ<br />
<br />
ज़बान खुश्क है आवाज़ रुकती जाती है<br />
<br />
तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैं<br />
<br />
<br />
मेरे गले में तुम्हारी गुदाज़ बाहें हैं<br />
<br />
तुम्हारे होठों पे मेरे लबों के साये हैं<br />
<br />
मुझे यकीं है कि हम अब कभी न बिछड़ेंगे<br />
<br />
तुम्हें गुमान है कि हम मिलके भी पराये हैं।<br />
<br />
तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैं<br />
<br />
<br />
मेरे पलंग पे बिखरी हुई किताबों को,<br />
<br />
अदाए-अज्ज़ो-करम से उठ रही हो तुम<br />
<br />
सुहाग-रात जो ढोलक पे गाये जाते हैं,<br />
<br />
दबे सुरों में वही गीत गा रही हो तुम<br />
<br />
तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैं<br />
<br />
<br />
वे लमहे कितने दिलकश थे वे घड़ियाँ कितनी प्यारी थीं,<br />
<br />
वे सहरे कितने नाज़ुक थे वे लड़ियाँ कितनी प्यारी थीं<br />
<br />
<br />
बस्ती को हर-एक शादाब गली, रुवाबों का जज़ीरा थी गोया<br />
<br />
हर मौजे-नफ़स, हर मौजे सबा, नग़्मों का ज़खीरा थी गोया<br />
<br />
<br />
नागाह लहकते खेतों से टापों की सदायें आने लगीं<br />
<br />
बारूद की बोझल बू लेकर पच्छम से हवायें आने लगीं<br />
<br />
<br />
तामीर के रोशन चेहरे पर तखरीब का बादल फैल गया<br />
<br />
हर गाँव में वहशत नाच उठी, हर शहर में जंगल फैल गया<br />
<br />
<br />
मग़रिब के मुहज़्ज़ब मुल्कों से कुछ खाकी वर्दी-पोश आये<br />
<br />
इठलाते हुए मग़रूर आये, लहराते हुए मदहोश आये<br />
<br />
<br />
खामोश ज़मीं के सीने में, खैमों की तनाबें गड़ने लगीं<br />
<br />
मक्खन-सी मुलायम राहों पर बूटों की खराशें पड़ने लगीं<br />
<br />
<br />
फौजों के भयानक बैंड तले चर्खों की सदायें डूब गईं<br />
<br />
जीपों की सुलगती धूल तले फूलों की क़बायें डूब गईं<br />
<br />
<br />
इनसान की कीमत गिरने लगी, अजनास के भाओ चढ़ने लगे<br />
<br />
चौपाल की रौनक घटने लगी, भरती के दफ़ातर बढ़ने लगे<br />
<br />
<br />
बस्ती के सजीले शोख जवाँ, बन-बन के सिपाही जाने लगे<br />
<br />
जिस राह से कम ही लौट सके उस राह पे राही जाने लगे</span><br />
<br />
<br />
इन जाने वाले दस्तों में ग़ैरत भी गई, बरनाई भी<br />
<br />
माओं के जवां बेटे भी गये बहनों के चहेते भाई भी<br />
<br />
<br />
बस्ती पे उदासी छाने लगी, मेलों की बहारें ख़त्म हुई<br />
<br />
आमों की लचकती शाखों से झूलों की कतारें ख़त्म हुई<br />
<br />
<br />
धूल उड़ने लगी बाज़ारों में, भूख उगने लगी खलियानों में<br />
<br />
हर चीज़ दुकानों से उठकर, रूपोश हुई तहखानों में<br />
<br />
<br />
बदहाल घरों की बदहाली, बढ़ते-बढ़ते जंजाल बनी<br />
<br />
महँगाई बढ़कर काल बनी, सारी बस्ती कंगाल बनी<br />
<br />
<br />
चरवाहियाँ रस्ता भूल गईं, पनहारियाँ पनघट छोड़ गईं<br />
<br />
कितनी ही कंवारी अबलायें, माँ-बाप की चौखट छोड़ गईं<br />
<br />
<br />
इफ़लास-ज़दा दहकानों के हल-बैल बिके, खलियान बिके<br />
<br />
जीने की तमन्ना के हाथों, जीने ही के सब सामान बिके<br />
<br />
कुछ भी न रहा जब बिकने को जिस्मों की तिजारत होने लगी<br />
<br />
ख़लवत में भी जो ममनूअ थी वह जलवत में जसारत होने लगी<br />
<br />
तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैं<br />
<br />
<br />
तुम आ रही हो सरे-आम बाल बिखराये हुये<br />
<br />
हज़ार गोना मलामत का बार उठाये हुए<br />
<br />
हवस-परस्त निगाहों की चीरा-दस्ती से<br />
<br />
बदन की झेंपती उरियानियाँ छिपाए हुए<br />
<br />
तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैं<br />
<br />
<br />
मैं शहर जाके हर इक दर में झाँक आया हूँ<br />
<br />
किसी जगह मेरी मेहनत का मोल मिल न सका<br />
<br />
सितमगरों के सियासी क़मारखाने में<br />
<br />
अलम-नसीब फ़िरासत का मोल मिल न सका<br />
<br />
तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैं<br />
<br />
<br />
तुम्हारे घर में क़यामत का शोर बर्पा है<br />
<br />
महाज़े-जंग से हरकारा तार लाया है<br />
<br />
कि जिसका ज़िक्र तुम्हें ज़िन्दगी से प्यारा था<br />
<br />
वह भाई 'नर्ग़ा-ए-दुश्मन' में काम आया है<br />
<br />
तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैं<br />
<br />
<br />
हर एक गाम पे बदनामियों का जमघट है<br />
<br />
हर एक मोड़ पे रुसवाइयों के मेले हैं<br />
<br />
न दोस्ती, न तकल्लुफ, न दिलबरी, न ख़ुलूस<br />
<br />
किसी का कोई नहीं आज सब अकेले हैं<br />
<br />
तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैं<br />
<br />
वह रहगुज़र जो मेरे दिल की तरह सूनी है<br />
<br />
न जाने तुमको कहाँ ले के जाने वाली है<br />
<br />
तुम्हें खरीद रहे हैं ज़मीर के कातिल<br />
<br />
उफ़क पे खूने-तमन्नाए-दिल की लाली है<br />
<br />
तसव्वुरात की परछाइयाँ उभरती हैं<br />
<br />
सूरज के लहू में लिथड़ी हुई वह शाम है अब तक याद मुझे<br />
<br />
चाहत के सुनहरे ख़्वाबों का अंजाम है अब तक याद मुझे<br />
<br />
<br />
उस शाम मुझे मालूम हुआ खेतों की तरह इस दुनियाँ में<br />
<br />
सहमी हुई दोशीज़ाओं की मुसकान भी बेची जाती है<br />
<br />
<br />
उस शाम मुझे मालूम हुआ, इस कारगहे-ज़रदारी में<br />
<br />
दो भोली-भाली रूहों की पहचान भी बेची जाती है<br />
<br />
<br />
उस शाम मुझे मालूम हुआ जब बाप की खेती छिन जाये<br />
<br />
ममता के सुनहरे ख्वाबों की अनमोल निशानी बिकती है<br />
<br />
<br />
उस शाम मुझे मालूम हुआ, जब भाई जंग में काम आये<br />
<br />
सरमाए के कहबाख़ाने में बहनों की जवानी बिकती है<br />
<br />
<br />
सूरज के लहू में लिथड़ी हुई वह शाम है अब तक याद मुझे<br />
<br />
चाहत के सुनहरे ख्वाबों का अंजाम है अब तक याद मुझे<br />
<br />
<br />
तुम आज ह्ज़ारों मील यहाँ से दूर कहीं तनहाई में<br />
<br />
या बज़्मे-तरब आराई में<br />
<br />
मेरे सपने बुनती होगी बैठी आग़ोश पराई में।<br />
<br />
<br />
और मैं सीने में ग़म लेकर दिन-रात मशक्कत करता हूँ,<br />
<br />
जीने की खातिर मरता हूँ,<br />
<br />
अपने फ़न को रुसवा करके अग़ियार का दामन भरता हूँ।<br />
<br />
<br />
मजबूर हूँ मैं, मजबूर हो तुम, मजबूर यह दुनिया सारी है,<br />
<br />
तन का दुख मन पर भारी है,<br />
<br />
इस दौरे में जीने की कीमत या दारो-रसन या ख्वारी है।<br />
<br />
<br />
मैं दारो-रसन तक जा न सका, तुम जहद की हद तक आ न सकीं<br />
<br />
चाहा तो मगर अपना न सकीं<br />
<br />
हम तुम दो ऐसी रूहें हैं जो मंज़िले-तस्कीं पा न सकीं।<br />
<br />
<br />
जीने को जिये जाते हैं मगर, साँसों में चितायें जलती हैं,<br />
<br />
खामोश वफ़ायें जलती हैं,<br />
<br />
संगीन हक़ायक़-ज़ारों में, ख्वाबों की रिदाएँ जलती हैं।<br />
<br />
<br />
और आज इन पेड़ों के नीचे फिर दो साये लहराये हैं,<br />
<br />
फिर दो दिल मिलने आए हैं,<br />
<br />
फिर मौत की आंधी उट्ठी है, फिर जंग के बादल छाये हैं,<br />
<br />
<br />
मैं सोच रहा हूँ इनका भी अपनी ही तरह अंजाम न हो,<br />
<br />
इनका भी जुनू बदनाम न हो,<br />
<br />
इनके भी मुकद्दर में लिखी इक खून में लिथड़ी शाम न हो॥<br />
<br />
<br />
सूरज के लहू में लिथड़ी हुई वह शाम है अब तक याद मुझे<br />
<br />
चाहत के सुनहरे ख्वाबों का अंजाम है अब तक याद मुझे॥<br />
<br />
<br />
हमारा प्यार हवादिस की ताब ला न सका,<br />
<br />
मगर इन्हें तो मुरादों की रात मिल जाये।<br />
<br />
<br />
हमें तो कश्मकशे-मर्गे-बेअमा ही मिली,<br />
<br />
इन्हें तो झूमती गाती हयात मिल जाये॥<br />
<br />
<br />
बहुत दिनों से है यह मश्ग़ला सियासत का,<br />
<br />
कि जब जवान हों बच्चे तो क़त्ल हो जायें।<br />
<br />
<br />
बहुत दिनों से है यह ख़ब्त हुक्मरानों का,<br />
<br />
कि दूर-दूर के मुल्कों में क़हत बो जायें॥<br />
<br />
<br />
बहुत दिनों से जवानी के ख्वाब वीराँ हैं,<br />
<br />
बहुत दिनों से मुहब्बत पनाह ढूँढती है।<br />
<br />
<br />
बहुत दिनों में सितम-दीद शाहराहों में,<br />
<br />
निगारे-ज़ीस्त की इस्मत पनाह ढूँढ़ती है॥<br />
<br />
<br />
चलो कि आज सभी पायमाल रूहों से,<br />
<br />
कहें कि अपने हर-इक ज़ख्म को जवाँ कर लें।<br />
<br />
<br />
हमारा राज़, हमारा नहीं सभी का है,<br />
<br />
चलो कि सारे ज़माने को राज़दाँ कर लें॥<br />
<br />
<br />
चलो कि चल के सियासी मुकामिरों से कहें,<br />
<br />
कि हम को जंगो-जदल के चलन से नफ़रत है।<br />
<br />
<br />
जिसे लहू के सिवा कोई रंग रास न आये,<br />
<br />
हमें हयात के उस पैरहन से नफ़रत है॥<br />
<br />
<br />
कहो कि अब कोई कातिल अगर इधर आया,<br />
<br />
तो हर कदम पे ज़मीं तंग होती जायेगी।<br />
<br />
<br />
हर एक मौजे हवा रुख बदल के झपटेगी,<br />
<br />
हर एक शाख रगे-संग होती जायेगी॥<br />
<br />
<br />
उठो कि आज हर इक जंगजू से कह दें,<br />
<br />
कि हमको काम की खातिर कलों की हाजत है।<br />
<br />
<br />
हमें किसी की ज़मीं छीनने का शौक नहीं,<br />
<br />
हमें तो अपनी ज़मीं पर हलों की हाजत है॥<br />
<br />
<br />
कहो कि अब कोई ताजिर इधर का रुख न करे,<br />
<br />
अब इस जा कोई कंवारी न बेची जाएगी।<br />
<br />
<br />
ये खेत जाग पड़े, उठ खड़ी हुई फ़सलें,<br />
<br />
अब इस जगह कोई क्यारी न बेची जायेगी॥<br />
<br />
<br />
यह सर ज़मीन है गौतम की और नानक की,<br />
<br />
इस अर्ज़े-पाक पे वहशी न चल सकेंगे कभी।<br />
<br />
<br />
हमारा खून अमानत है नस्ले-नौ के लिए,<br />
<br />
हमारे खून पे लश्कर न पल सकेंगे कभी॥<br />
<br />
<br />
कहो कि आज भी हम सब अगर खामोश रहे,<br />
<br />
तो इस दमकते हुए खाकदाँ की खैर नहीं।<br />
<br />
<br />
जुनूँ की ढाली हुई ऐटमी बलाओं से,<br />
<br />
ज़मीं की खैर नहीं आसमाँ की खैर नहीं॥<br />
<br />
<br />
गुज़श्ता जंग में घर ही जले मगर इस बार,<br />
<br />
अजब नहीं कि ये तनहाइयाँ भी जल जायें।<br />
<br />
<br />
गुज़श्ता जंग में पैकर जले मगर इस बार,<br />
<br />
अजब नहीं कि ये परछाइयाँ भी जल जायें॥ <br />
<br />
<br />
हिन्दी (बॉलीवुड) फ़िल्मों के लिए लिखे उनके गानों में भी उनका व्यक्तित्व झलकता है । उनके गीतों में संजीदगी कुछ इस कदर झलकती है जैसे ये उनके जीवन से जुड़ी हों । उन्हें यद्यपि शराब की आदत पड़ गई थी पर उन्हें शराब (मय) के प्रशंसक गीतकारों में नहीं गिना जाता है । इसके बजाय उनका नाम जीवन के विषाद, प्रेम में आत्मिकता की जग़ह भौतिकता तथा सियासी खेलों की वहशत के गीतकार और शायरों में शुमार है ।<br />
<br />
साहिर वे पहले गीतकार थे जिन्हें अपने गानों के लिए रॉयल्टी मिलती थी । उनके प्रयास के बावजूद ही संभव हो पाया कि आकाशवाणी पर गानों के प्रसारण के समय गायक तथा संगीतकार के अतिरिक्त गीतकारों का भी उल्लेख किया जाता था । इससे पहले तक गानों के प्रसारण समय सिर्फ गायक तथा संगीतकार का नाम ही उद्घोषित होता था ।<br />
<br />
<br />
प्रस्तुत लेख विकिपीडिया से लिया गया है वहाँ जाने के लिए यहाँ <a href="http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B0_%E0%A4%B2%E0%A5%81%E0%A4%A7%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A5%80">क्लिक</a> करेंविभावरी रंजनhttp://www.blogger.com/profile/17929447279673536929noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-7553231715256006441.post-69990381284953888452009-07-29T11:11:00.005+05:302011-03-04T01:40:19.074+05:30श्रद्धाञ्जलि<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhDP8Nm6xH8mOJBcTiPIKaOLH7M0A1G_wfqAtZ5-3F_VIYFl9wW60PzHlTPN-3A0TeL8CLfkIX8hukW1TnLYDe64v6m5DKAMeXTtULs2exzv4zDZMBSeu863nKYIf37g2D4WUvCk5kAVQty/s1600-h/kedarnathpandey.jpg"><img alt="" border="0" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5363753490274699778" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhDP8Nm6xH8mOJBcTiPIKaOLH7M0A1G_wfqAtZ5-3F_VIYFl9wW60PzHlTPN-3A0TeL8CLfkIX8hukW1TnLYDe64v6m5DKAMeXTtULs2exzv4zDZMBSeu863nKYIf37g2D4WUvCk5kAVQty/s200/kedarnathpandey.jpg" style="cursor: pointer; float: right; height: 200px; margin: 0pt 0pt 10px 10px; width: 150px;" /></a><br />
६ अप्रैल २००८,आज से ही नवरात्र प्रारम्भ होने वाला था,यह रविवार का दिन ही साक्षी बनना था एक महान् विद्वान,एक भक्त के देहावसान का।<br />
बयान करना मुश्किल है कि पिता की मृत्यु हृदय को कितना विदीर्ण करती है।पिछले ३० सालों का साथ एक झटके में छूट गया चलिए मैं तो बेटा हूँ उसकी क्या हालत हुई होगी जो बचपन में साथ खेला और उन्हें देखते हुए बड़ा हुआ,वो भाई कैसा महसूस कर रहा होगा लगभग रोज़ झगड़ना करीब ६५-६८ सालों से!!!<br />
सब एक दिन खत्म,सच में कुछ छन से टूट जाता है भीतर।<br />
सालों से देख रहा हूँ वही बिस्तर वही बिखरा सामान,अक्सर हम कहा करते कि ये सामान ये किताबें कहीं और क्यों नहीं रख लेते,बहुता अस्त-व्यस्त दिखता है।पर कभी कोई विरोध या नाराज़गी नहीं दिखाई बस मुस्कुरा कर रह जाते थे और कहा करते कि तुमलोग नहीं समझोगे।अब भी सबकुछ वैसा ही है बिस्तर पर बिखरी किताबें,दिनकर का कुरुक्षेत्र,जानकीवल्लभ शास्त्री की राधा,स्वामी विवेकानन्द का ज्ञानयोग,महात्मा विदुर,भाषा-विज्ञान और उनकी स्वलिखित कुछ अप्रकाशित पुस्तकों के साथ अन्य भी हैं और सब ज्यों की त्यों।कुछ पर से मैंने धूल साफ़ की थी और कुछ पर धूल की चादर यूँ ही बिछी पड़ी है।इतना संचय इतना संग्रह है पर केवल किताबों का पैसे तो कुछ खास होते नहीं थे उनके पास।५-६ हज़ार की पेंशन और उनके खाते में कोई २० हज़ार के आस-पास की कुल जमा पूँजी रही होगी,पर आप उनसे किताबों की बातें कर सकते थे व्याकरण,साहित्य,कर्मकाण्ड,ज्योतिष और अध्यात्म की ढेरों किताबें,उन्हें पढ़ने का बहुत शौक़ था पक्के तौर पर नहीं कह सकता पर ५-६ घण्टे तो जरूर पढ़ते थे।बहुत दुःखी रहते थे हमसे हमेशा कहा करते थे कि काश! तुम सुयोग्य होते तो तो मेरी ये पुस्तकें तुम्हारे बहुत काम आतीं।<br />
खैर इतनी उत्कट प्रतिभा इतना व्यापक ज्ञान और कमाल ये कि केवल साहित्य ही नहीं वरन् व्याकरण,कर्मकाण्ड,ज्योतिष,अध्यात्म और तंत्र विज्ञान पर भी उतनी ही व्यापक दृष्टि उतनी ही अच्छी पकड़ थी।<br />
उनकी तस्वीरें हैं मेरे पास,बहुत सारी हैं कुछ अच्छे समय की हैं कुछ महाप्रयाण के समय की हैं।चेहरे पर का तेज वैसे का वैसा है,ऐसा लगता है कि जैसे सो रहे हैं ज़रा सा छूते ही उठ जायेंगे।उनको इस हालत में देख कर मेरी बेटी गुनगुन जो कि उनकी पूजा के समय उनके आसपास मडराती रहती थी और उन्हें पूजा वाले दादाजी कहा करती थी ने मुझसे पूछा कि पूजा वाले दादाजी को क्या हुआ है? बालसुलभ सवाल अब क्या जवाब देता क्या कहता रटा रटाया किन्तु सबसे सही जवाब "पूजा वाले दादाजी भगवान के पास चले गए हैं,और बहुत जब्त करने के बाद भी आँसुओं का बाँध टूट गया तो उसने बड़े ही ग़ौर से मुझे देखा और एकबार और पूछा कि पूजा वाले दादाजी को भगवान जी ले गए?मैनें रुँधे गले से कहा "हाँ" तो मेरी बच्ची एकदम खामोश हो गई और मेरे गले से लग गई और करीब १ घण्टे तक कुछ बोली ही नहीं।मुझे लगता है कि गुनगुन जैसे समझ गयी थी कि अब पूजा वाले दादाजी वापस नहीं आयेंगे और पूजा के समय उन से अपने बालसुलभ प्रश्न नहीं पूछ पायेगी,इसीलिये खामोश थी लेकिन आप बच्चे की चुप्पी से उसकी तकलीफ़ का अन्दाज़ा नहीं लगा सकते हैं,खै़र!<br />
जब भी मुझे कुछ जानना होता और उनके साथ होता तो बहुत सवाल पूछता था और पता होता था कि जवाब मिलना तय है वैसे समस्या तब होती थी जब दूर होता था और फ़ोन या मोबाइल पर जवाब चाहिए होता था,अब हम जैसे आधुनिक लोग अगर मोबाइल का इस्तेमाल करें तो कोई समस्या नहीं होती पर उन जैसे लोगों को संभवतः दिक्कत होगी और वही होता भी था पर स्पीकरफ़ोन पर जवाब मिल जाता था।ऐसा कभी नहीं हुआ कि कुछ पूछा हो और जवाब नहीं मिला हो।<br />
मानव की सहज प्रवृत्ति होती है कि अपने प्रिय के बिछड़ने भय बहुत ही ज़्यादा होता है भले ही वह प्रकट नहीं करे पर परोक्ष रूप से चिन्तित बहुत होता है।पर सारी चिन्ता,सारी दुआयें-मन्नतें धरी की धरी रह जाती हैं जब बुलावा आ जाता है।<br />
५ अप्रैल की रात से ही बहुत परेशान थे,बड़ी बेचैनी थी वैसे बेचैन तो सुबह से ही थे पर शरीर में तकलीफ़ रात में शुरु हुई,दिन में१०-११ के आसपास बड़ीमाँ को बता दिया कि पैसे कहाँ रखे हैं(आपको जानकर बहुत आश्चर्य होगा कि मात्र ४०० रुपये थे उनके पास पर कभी अभाव में नहीं रहे माँ सबकुछ पूरा करती थीं)।मँझले पिताजी को एक किताब दी और कहा कि इसको जला देना नहीं तो इसका दुरुपयोग होगा,मँझले पिताजी तो बिल्कुल स्तब्ध रह गए क्योंकि वो तंत्र मन्त्रों की एक दुर्लभ और विलक्षण पुस्तक थी।पिताजी ने उनसे कहा कि जीवन का कोई भरोसा नहीं है ध्यान रखना कि इस पुस्तक का कोई दुरुपयोग नहीं हो।असल में उन्हें पूर्वाभास और स्वर-विज्ञान का भी बहुत अच्छा ज्ञान था तो संभवतः उन्हें पता लग गया था कि अब माता का बुलावा आ गया है।शरीर छोड़ने के करीब डेढ़ घण्टे पहले मेरी उनसे बात हुई थी शायद मेरी आवाज़ नहीं सुन पाए होंगे,थोड़े अस्फुट स्वर में कहा कि आवाज़ साफ़ नहीं आरही है,मैने उनसे कहा कि बाबूजी धीरज धरिये हमारे लिये!आप ठीक हो जायेंगे।पर पता नहीं ऐसा क्यों लगा कि जान-बूझकर कुछ नहीं बोले और लगातार माँ का नाम लेते रहे।<br />
अन्तिम समय में मेरे गाँव का एक लड़का रन्जीत उनके साथ था उससे बातें करते रहे,चिर-निद्रा में लीन होने से करीब १५-२० मिनट पहले उससे कहा कि पता नहीं कौन सा ऐसा पाप है माँ जिस की सज़ा मुझे दे रही है कि मुझे तकलीफ़ होरही है,फ़िर उन्होंने रन्जीत से स्वामी रामकृष्ण परमहंस की कथा सुनाई और कहा कि जब उन जैसे महान् संत और माता के भक्त के गले में कैन्सर होगया था तो मैं तो एक सामान्य मनुष्य हूँ मेरी क्या बिसात?फ़िर खामोश होगये और १५ मिनटों के बाद उसकी गोद में ही काया छोड़ दी।और उन्हीं के साथ हमारे कुल से अदम्य प्रतिभा और अतुल विद्वत्ता का अन्तिम अध्याय समाप्त होगया।ये वो विद्वान थे जो कि कहा करते थे-"आह्लादयति आनन्दम् यः सः अल्लाह-अर्थात् जो आनन्द को भी आनन्दित कर दे वो अल्लाह है।कितने महान् विचार हैं!<br />
श्री केदारनाथ पाण्डेय जी भले ही इस संसार में नहीं रहे पर मुझे हमेशा उनकी कृपा और प्रेरणा अपने आस-पास महसूस होती है।हमेशा अच्छी शिक्षा दी हमेशा विद्वान बनने को कहा,भक्त बनने को कहा।२८ सालों से रविवार का व्रत चलता आरहा था संयोग देखिये कि व्रत नहीं टूटा बेशक़ जीवन की डोर टूट गई।६ अप्रैल २००८ रविवार का दिन उनके जीवन का अन्तिम दिन था,आश्चर्य है कि मैं इतना लिख पाया,इतना बता पाया।होना तो यह चाहिये कि जैसा सभी करते हैं मैं भी करता और उनके शव पर चिल्ला चिल्ला कर रोता पर इतने बड़े विद्वान और देवी के भक्त के लिये ये उचित श्रद्धाञ्जलि नहीं होती।ये एक सामान्य मृत्यु नहीं थी ये तो वो मृत्यु थी जिस पर देवता भी आँसू बहाते हैं,ऐसी मृत्यु का तो सम्मान होना चाहिये सिर्फ़ सम्मान!</div>विभावरी रंजनhttp://www.blogger.com/profile/17929447279673536929noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7553231715256006441.post-75925394936513584842008-08-05T21:33:00.002+05:302008-08-05T21:51:48.825+05:30नायक<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgsGNkK4a2iXFdzGPol3_cPyUSkWYKbrDR7ktnFyejtJUX9O2h3-XH6MFPjfE0l-lGt_wLRfvR71D1ID3Xa9WqBqIGmyMQMBRPIgAtw8qaT_DeSIFPbMtdbuvltOEC3RgsAweyzZUJiMhoE/s1600-h/Azad.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5231069108249952626" style="FLOAT: right; MARGIN: 0px 0px 10px 10px; CURSOR: hand" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgsGNkK4a2iXFdzGPol3_cPyUSkWYKbrDR7ktnFyejtJUX9O2h3-XH6MFPjfE0l-lGt_wLRfvR71D1ID3Xa9WqBqIGmyMQMBRPIgAtw8qaT_DeSIFPbMtdbuvltOEC3RgsAweyzZUJiMhoE/s200/Azad.jpg" border="0" /></a><br /><div><br /><br /><div><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">मेरे पिताजी कहा करते थे "ईश्वर जो कहते हैं वो करो और जो करते हैं वो मत करो क्योंकि तुम थक कर गिर जाओगे",मुझे ढेरों कहानियाँ सुनाते थे,गीताप्रेस में छपने वाली कुछ अच्छी किताबें लाकर देते थे कईयों के तो नाम आज भी बराबर याद हैं जैसे वीर-बालक,वीर बालाएं और जाने कितनी ही किताबें बस एक ही धुन थी उन्हें कि कैसे मेरे भीतर का बच्चा एक बहुत ही सभ्य और सुसंस्कृत इंसान बन जाये। मुझे नायकों की कहानियाँ सुनाया करते थे उन नायकों की जिन्होंने भारत को,भारत के नागरिकों को बदल कर रख दिया। मुझे भगत सिंह,नेताजी सुभाषचंद्र बोस,चंद्रशेखर आज़ाद सरीखे नायकों के बारे में बताया करते। तब मेरे भीतर का बच्चा उन जैसा इन्सान बनने को मचल उठता। समय बीता और वो बच्चा पुरुष बन गया पर उनके जैसा नहीं बन पाया जब कारण ढूँढने की कोशिश की तो समझ नहीं आया कि वो लोग आखिर किस मिट्टी के बने थे और मैं किस मिट्टी का कि उन जैसा नहीं बन सका।</span><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">आखिर नायक कौन है? आखिर क्या चीज़ें हैं जो हमें उनसे अलग करती हैं।क्या हम उनकी तलाश में किसी नतीजे तक पहुँच पाये हैं? यही ध्यान देने की बात है।</span><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">आज मैंने एक बहुत पुरानी तस्वीर देखी,जो चंद्रशेखर आज़ाद की थी और उनकी शहादत के बाद ली गयी होगी सारा दिन मेरा मन ऊहापोह में रहा। सोचता रहा पर समझ नही पाया कि आखिर आज़ाद किस मिट्टी के बने थे, कैसे संस्कार थे उनमें जो उन्हें हर मोड़ पर जीवन और मृत्यु के बीच की रहस्यमयी कड़ियों को खोलने और समझाने का करते थे।</span><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">आज हम जिस आज़ाद भारत के साये तले खुदको रोजी रोटी की भाग-दौड़ मे जिस तरह से मसरूफ़ कर चुके हैं वहाँ न तो हमारा नायक ही बचा है और न तो उसका आदर्श भारत!तब तो पिताजी कहना एकदम सही था कि ईश्वर जो कहते हैं वो करो और जो करते हैं वो मत करो,पर न तो हम ईश्वर,नायक या यों कहें युगपुरुष का कहा ही कर पाते हैं और उनका किया हुआ तो दोहराने की बात करना तो सूरज को दिया दिखाने जैसा है सो वह तो होने से रहा।</span><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">ईमानदारी से कहूँ तो आज़ाद के आदर्शों को अपने जीवन में आधा प्रतिशत भी उतार पाऊँ ये तो लगभग असम्भव सा दिखता है,आखिर मुझे नौकरी करनी है,पैसे कमाने हैं,पत्नी और बच्चों को पालना है,मेरे पास आज़ाद और आज़ाद के भारत के बारे में सोचने या समझने का समय ही कहाँ है।</span><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">और फ़िर मैं अकेला भी तो हूँ और अकेला चना भाड़ कहाँ फोड़ता है। बहुत ख़ूब!पता नहीं कितने लोग हैं जो मेरी ही तरह की सो़च रखते होंगे और जैसे बहाने मेरे पास हैं वैसे ही या उनसे कुछ बेहतर बहाने उनके पास भी होंगे,पर कमाल की बात है कि हमें ज़रा भी शर्मिंदगी नहीं होती क्योंकि हम जानते हैं कि हमारे व्यक्तित्व का ह्रास दिन-प्रतिदिन के हिसाब से हो रहा है।</span><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">हमारा जीवन रोजी-रोटी की भागदौड़, नये अवसरों की तलाश,कम उम्र में ही भरपूर सुख-सुविधाओं की लालसा,एक दूसरे से आगे निकलने की कभी न खत्म होने वाली होड़,हाय पैसा!हाय पैसा!जो कि आज की बुनियादी जरूरतें हैं में उलझ चुका है। इस वजह से न तो हम अपना मूल्यांकन कर पारहे हैं और ना ही आज़ाद के पराधीन भारत का जिसमें कि हमारी छोटी से छोटी बातों को भी डन्डों और बूटों से दबा दिया जाता था। भारतीयता के लिये लिखना एक संगीन जुर्म हुआ करता था और आज़ादी तो एक सपना बन चुकी थी और वही आज आज़ाद का स्वतंत्र भारत हमारी आँखों के सामने है जिसमें सरकार के नुमाइन्दे संसद में रुपये की चीरहरण करते दिखते हैं, एकदूसरे के ऊपर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता है, उसके बाद फ़िर सिलसिला शुरू होता है गालियों, लात-घूंसों, जूतों, कुर्सियों और माइक को एकदूसरे पर फेंकने का। और इसी बीच सभापति महोदय शान्त रहें शान्त रहें बोलते रह जाते हैं,ये बहुत ही शर्मनाक है और आज हिन्दुस्तान के हर हिस्से में यही हो रहा है बस अन्तर सिर्फ़ लोगों के स्तर का है। कोई संसद में बैठता है और कोई किसी बस्ती में रातें काली करता है। कमोबेश हर जगह यही हाल है! कार्यालय, मंच, रोड, हर जगह सरकार के नुमाइंदों को आम लोगों के सामने हाथ फैलाते देखा जा सकता है!हद तो यह है की शिक्षा के क्षेत्र में भी इन्ही हाथों का फैलाव स्पष्ट दिखता है!हम अच्छे व्यावसायिक शिक्षण संस्थानों में जाने के लिए हम मुहमांगी माँगी कीमत देने को तैयार हैं।आज कल तो ऐसी ऐसी एजेंसी खुल चुकीं हैं की बस वहां आपको जा कर ये बताना होगा की आपको रेलवे में जाना है या क्लर्क ग्रेड में हाथ आजमाना है!बैंकिंग के लिए भी गुंजाईश है! बस सबकी अलग अलग कीमत है! वाह क्या बात है!क्या ऐसी शिक्षा और नौकरी पाने के इन तौर तरीकों से हम आजाद वाले संस्कार की उम्मीद भी कर सकते हैं? </span><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">अंत में इतना ज़रूर बोलूँगा की हम पिंजरों में बंद वो पंछी हैं जो बस दानों की लालच में अपने मालिक की राह तकते हैं! और उसका दिया दाना खा कर अपने इस बंदी जीवन को स्वीकार कर लेते हैं। पर जब पिंजरा टूटता है तो हम जैसे पंछियों में इतनी उर्जा नहीं बची होती है की खुले आसमान में एक छोटी उड़ान भी भर सकें।</span></div></div>shatrujit tripathihttp://www.blogger.com/profile/05260476128150310195noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7553231715256006441.post-26828300397384546462008-02-26T22:30:00.005+05:302008-02-26T22:53:14.899+05:30मोती बरसा जाता ।<div align="left"><span style="color:#6600cc;"><span style="font-family:verdana;">रिमझिम रिमझिम गगन मगन हो मोती बरसा जाता ।<br />शतदल के दल दल पर ढलकर<br />नयन नयन के तल में पलकर<br />बरस- बरस कर तरसे तन को हरित भरित कर जाता ।<br />हिलती डुलती लचक डालियाँ<br />बजा रही हैं मधुर तालियाँ<br />बून्दों की फुलझड़ियों में वह,गीत प्रीत का गाता ।<br />हृदय- हृदय में तरल प्यास है<br />प्रिय के आगम का हुलास है<br />नभ का नव अनुराग राग इस भूतल तल पर आता ।<br />शुभ्रवला का बादल दल में<br />ज्यों विद्युत् नभ-नव-घन-तल में<br />चाव भरे चातक के चित में चोट जगाये जाता ।<br />चहल-पहल है महल-महल में<br />स्वर्ग आ मिला धरती-तल में<br />पल-पल में तरुतृण खग-मृग का रूप बदलता जाता ।<br />बुझी प्यास संचित धरती की<br />फली आस पल-पल मरती की<br />सुख दुःख में हंसते रहना यह इन्दु बताता ।<br />नभ हो उठा निहाल सजल हो<br />तुहिन बिन्दुमय ज्यों शतदल हो<br />शीतल सुरभि समीर चूमकर सिहर- सिहर तन जाता ।<br />झूमी अमराई मदमाती<br />केकी की कल- कल ध्वनि लाती<br />अन्तर-तर के तार- तार कीं बादल बरस भिंगोता ।<br />भींगी दुनिया भींगा वन- वन<br />भींग उठा भौंरों का गुँजन<br />कुंज- कुंज में कुसुम पुंज में मधुमय स्वर बन जाता । </span></span></div>विभावरी रंजनhttp://www.blogger.com/profile/17929447279673536929noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7553231715256006441.post-23253096125354276702008-02-19T07:28:00.003+05:302008-02-19T07:44:06.781+05:30प्रति चरण पर मैं प्रगति का गीत गाता जा रहा हूँ।<span style="color:#6600cc;"><span style="font-family:courier new;">प्रति चरण पर मैं प्रगति का गीत गाता जा रहा हूँ।<br />जा रहा हूँ मैं अकेला<br />शून्य पथ वीरान सारा<br />विघ्न की बदली मचलकर<br />है छिपाती लक्ष्य तारा<br />दूर मंज़िल है न जाने<br />क्यों स्वयं मुस्का रहा हूँ॥<br />जलधि सा गम्भीर हूँ मैं<br />चेतना मेरी निराली<br />प्रगति का संदेशवाहक<br />लौट आऊँगा न खाली<br />कंटकों के बीच सुमनों की<br />मधुरिमा पा रहा हूँ<br />तुम करो उपहास पर<br />मैं तो हूँ सदा का विजेता<br />तुम समय की मांग पर<br />सत्वर-नवल संसृति प्रजेता<br />आज तक की निज अगति पर<br />मैं स्वयं शरमा रहा हूँ॥<br />आज सहमी सी हवाएँ<br />मन्द-मन्थर चल रही हैं<br />दिव्य जीवन की सुनहली रश्मियाँ<br />भी बल रही हैं<br />मैं युगों पर निज प्रगति का<br />चिह्न देता आ रहा हूँ॥<br />अखिल वसुधा तो बहुत<br />पहले बिहँसते माप छोड़ा<br />अभी तो कल ही बड़ा<br />एवरेस्ट का अभिमान तोड़ा।<br />रुक अभी जा लक्ष्य पर निज<br />अतुल बल बतला रहा हूँ॥</span></span>विभावरी रंजनhttp://www.blogger.com/profile/17929447279673536929noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7553231715256006441.post-10464708959150716172007-08-27T10:54:00.001+05:302008-02-19T07:28:39.396+05:30कुशल तूलिका वाले कवि की नारी एक कला है।<span style="COLOR: rgb(102,0,204)">कुशल तूलिका वाले कवि की नारी एक कला है।</span><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">फूलों से भी अधिक सुकोमल</span><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">नरम अधिक नवनी से,</span><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">प्रतिपल पिछल-पिछल उठने वाली</span><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">अति इन्दु मनी से,</span><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">नवल शक्ति भरने वाली वह कभी नहीं अबला है।</span><br /><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">तनया-प्रिया-जननि के</span><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">अवगुण्ठन में रहने वाली,</span><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">सत्यं शिवम् सुन्दरम् सी</span><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">जीवन में बहने वाली,</span><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">विरह मिलन की धूप-छाँह में पलती शकुन्तला है।</span><br /><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">है आधार-शिला सुन्दरता की</span><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">मधु प्रकृति-परी सी,</span><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">शुभ संसृति का बीज लिये,</span><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">मनु की उस तरुण-तरी सी,</span><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">तिमिरावृत्त जीवन के श्यामल पट पर चंद्र्कला है।</span><br /><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">करुणा की प्रतिमा वियोग की</span><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">मूर्ति-मधुर-अलबेली</span><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">निज में ही परिपूर्ण प्रेममय</span><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">जग आधार अकेली,</span><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">सारी संसृति टिकी हुई ऐसी सुन्दर अचला है</span><br /><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">अमृत-सिन्धु ,</span>तू<span style="COLOR: rgb(102,0,204)"> अमृतमयी</span><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">जग की कल्याणी वाणी।</span><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">अब भी चम-चम चमक रही हैं</span><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">तेरी चरण निशानी,</span><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">तेरे ही प्रकाश से जगमग दीप जला है।</span><br /><span style="COLOR: rgb(102,0,204)">नारी एक कला है॥</span>विभावरी रंजनhttp://www.blogger.com/profile/17929447279673536929noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7553231715256006441.post-77495675357185264392007-07-24T16:55:00.000+05:302007-07-24T16:56:19.777+05:30कल और आज<span style="color: rgb(102, 0, 204);">कल भी बूंदें बरसीं थीं</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">कल भी बादल छाये थे</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">और कवि ने सोचा था</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">बादल,ये आकाश के सपने उन ज़ुल्फ़ों के साये हैं</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">दोशे-हवा पर मैख़ाने की मैख़ाने घिर आये हैं</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">रुत बदलेगी फ़ूल खिलेंगे झोंके मधु बरसायेंगे</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">उजले उजले खेतों में रंगीं आचल लहरायेंगे</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">चरवाहे बंसी की धुन से गीत फ़ज़ा में बोयेंगे</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">आमों के झुंडों के नीचे परदेसी दिल खोयेंगे</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">पैंग बढ़ाती गोरी के माथे से कौंदे लपकेंगे</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">जोहड़ के ठहरे पानी में तारे आँखें झपकेंगे</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">उलझी उलझी राहों में वो आँचल थामे आयेंगे</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">धरती,फ़ूल,आकाश,सितारे सपना सा बन जायेंगे</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">कल भी बूंदें बरसीं थीं</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">कल भी बादल छाये थे</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">और कवि ने सोचा था</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">आज भी बूंदें बरसेंगीं</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">आज भी बादल छाये हैं</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">और कवि इस सोच में है</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">बस्ती पर बादल छाये हैं,पर ये बस्ती किसकी है</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">धरती पर अमृत बरसेगा लेकिन ये धरती किसकी है</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">हल जोतेगी खेतों में अल्हड़ टोली दहक़ानों की</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">धरती से फ़ूटेगी मेहनत फ़ाक़ाकश इन्सानों की</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">फ़सलें काट के मेहनतकश ग़ल्ले के ढेर लगायेंगे</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">जागीरों के मालिक आकर सब पूँजी ले जायेंगे</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">बूढ़े दहक़ानों के घर बनिये की कुर्की़ आयेगी</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">और क़र्ज़े के सूद में कोई गोरी बेची जायेगी</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">आज भी जनता भूकी है और कल भी जनता तरसी थी</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">आज भी रिमझिम बरखा होगी कल भी बारिश बरसी थी</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">आज भी बूंदें बरसेंगीं</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">आज भी बादल छाये हैं</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">और कवि इस सोच में है</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 0); font-weight: bold;">दोश - ग़ुज़री हुई रात</span><br /><span style="color: rgb(102, 0, 0); font-weight: bold;">दहक़ाने - किसान लोग </span>विभावरी रंजनhttp://www.blogger.com/profile/17929447279673536929noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-7553231715256006441.post-20174798624726767012007-07-21T11:17:00.000+05:302007-07-21T11:20:45.765+05:30अजब सुरूर मिला है<span style="color: rgb(102, 0, 204);">अजब सुरूर मिला है मुझको दुआ करके</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">के मुस्कुराया है खुदा भी सितारा वा करके</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">गदागरी भी एक अस्लूबे फन है जब मैंने</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">उसी को माँग लिया उससे इल्तिजा करके</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">शब्बे फ़िराक़ के ज़ब्र को शिक़स्त हुई</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">के मैने सुबह तो कर ली खुदा खुदा करके</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">यह सोच कर कि कभी तो जवाब आएगा</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">मैं उसके दर पे खड़ा रह गया सदा कर के</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">यह चारागार हैं की इज़्तिमाये बदज़ौक़ा</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">वह मुझको देखें तेरी ज़ात से जुदा करके</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">खुदा भी उनको ना बख़्शे तो लुत्फ़ आ जाए</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">जो अपने आप से शर्मिन्दा हों खता करके</span>विभावरी रंजनhttp://www.blogger.com/profile/17929447279673536929noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-7553231715256006441.post-75186694235165592562007-07-21T11:11:00.000+05:302007-07-21T11:12:07.300+05:30आफ़ताब सर पर आ गया<span style="color: rgb(0, 0, 153);">दयारे दिल की रात में चराग़ सा जला गया</span><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153);">मिला नहीं तो क्या हुअ वह शक्ल तो दिखा गया</span><br /><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153);">जुदाइयों के ज़ख़्म दर्दे ज़िन्दगी ने भर दिए</span><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153);">उसे भी नीन्द आगई मुझे भी सब्र आगया</span><br /><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153);">वह दोस्ती तो ख़ैर अब नसीबे दुश्मनां हुई</span><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153);">वह छोटी-छोटी रन्जिशों का लुत्फ़ भी चला गया</span><br /><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153);">यह सुबह की सफ़ेदियाँ यह दोपहर की ज़र्दियाँ</span><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153);">मैं आइने में ढूँढता हूँ मैं कहाँ चला गया</span><br /><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153);">यह किस ख़ुशी की रेत पर ग़मों को नीन्द आ गई</span><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153);">वह लहर किस तरफ़ गई,यह मैं कहाँ समा गया</span><br /><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153);">जो और कुछ नहीं तो कोई ताज़ा दर्द ही मिले</span><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153);">मैं एक ही तरह की ज़िन्दगी से तंग आ गया</span><br /><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153);">गये दिनों की लाश पर पड़े रहोगे कब तलक</span><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153);">अलम कशो ! उठो कि आफ़ताब सर पर आ गया</span>shatrujit tripathihttp://www.blogger.com/profile/05260476128150310195noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-7553231715256006441.post-40447318691672194972007-07-21T11:08:00.000+05:302007-07-21T11:10:59.849+05:30वेदना की बाँसुरी<span style="color: rgb(0, 0, 153); font-family: arial;">खुल गये हैं बाँबियों के मुँह सुरंगों की तरह</span><br /><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153); font-family: arial;">आगये कुछ लोग सड़कों पर भुजंगों की तरह</span><br /><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153); font-family: arial;">सूर्य से लड़ने की जो करते हैं बातें रात भर</span><br /><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153); font-family: arial;">लुप्त हो जाते हैं वो दिन में पतंगों की तरह</span><br /><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153); font-family: arial;">वे अचानक ही कहानी के कथानक हो गये</span><br /><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153); font-family: arial;">और हम छपते रहे केवल प्रसंगों की तरह</span><br /><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153); font-family: arial;">वेदना की बाँसुरी को किस तरह सुन पाओगे</span><br /><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153); font-family: arial;">हर समय बजते रहोगे यदि मृदंगों की तरह</span><br /><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153); font-family: arial;">हम नहीं गन्तव्य तक पहुँचे तो कोई गम नहीं</span><br /><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153); font-family: arial;">पर न हम बैसाखियाँ लेगें अपंगों की तरह</span>shatrujit tripathihttp://www.blogger.com/profile/05260476128150310195noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7553231715256006441.post-80835973454560621442007-07-16T12:23:00.000+05:302007-07-16T12:24:51.559+05:30"सम्पादक की वाणी"<span style="color: rgb(51, 0, 153);">अंग्रेज़ी सभ्यता रीति को दूर भगाने वाली </span><br /><br /><span style="color: rgb(51, 0, 153);">जन-जन को झकझोर ज़ोर से रोज़ जगाने वाली </span><br /><br /><span style="color: rgb(51, 0, 153);">स्वयं बनी मार्जनी स्वरूपा "सम्पादक की वाणी" </span><br /><br /><span style="color: rgb(51, 0, 153);">भारत और भारती की जाग्रत वाणी कल्याणी </span><br /><br /><span style="color: rgb(51, 0, 153);">अपनी श्वेत प्रभा से भाषा से नवराष्ट्र विधात्री </span><br /><br /><span style="color: rgb(51, 0, 153);">सम्पादन की शुचि रुचि से जन जन की प्राण प्रदात्री </span><br /><br /><span style="color: rgb(51, 0, 153);">मनुज मनुज को यह प्रदीप्त देवत्व प्रदान करेगी </span><br /><br /><span style="color: rgb(51, 0, 153);">जीवन में यज्ञीय-प्रतिष्टा प्रद सम्मान वरेगी </span><br /><br /><span style="color: rgb(51, 0, 153);">सम्पादक की वाणि! देवि! यह अभिनन्दन है मेरा </span><br /><br /><span style="color: rgb(51, 0, 153);">शाक्त शक्ति जाग्रत कर दो तम हर दो हँसे सवेरा </span>मेरी लेखनीhttp://www.blogger.com/profile/17213517389487803793noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7553231715256006441.post-17835287411840415942007-07-16T11:04:00.000+05:302007-07-16T11:07:35.630+05:30दूजा रंग रास न आए<span style="color: rgb(51, 0, 153);">इस रंग बिरंगी दुनिया पर क्या रंग असर करता है,</span><br /><br /><span style="color: rgb(51, 0, 153);">सब अपने रंग नहाए,</span><br /><br /><span style="color: rgb(51, 0, 153);">दूजा रंग रास न आए,</span><br /><br /><span style="color: rgb(51, 0, 153);">ना फाग जगा , न धमार उठी, न चंग असर करता है,</span><br /><br /><span style="color: rgb(51, 0, 153);">आँखों के सहस ठिकाने तन-ताप लगे झुलसाने,</span><br /><br /><span style="color: rgb(51, 0, 153);">ये देह बने जलजात हठात अनंग असर करता है,</span><br /><br /><span style="color: rgb(51, 0, 153);">रंग श्यामल मधुर मिठौना,</span><br /><br /><span style="color: rgb(51, 0, 153);">निर्गुण हो सगुण सलौना,</span><br /><br /><span style="color: rgb(51, 0, 153);">साखी, बानी, कविता, पद और अभंग असर करता है,</span><br /><br /><span style="color: rgb(51, 0, 153);">अबके वह रंग लगाना,</span><br /><br /><span style="color: rgb(51, 0, 153);">बन जाये जग 'बरसाना',</span><br /><br /><span style="color: rgb(51, 0, 153);">उत्सव का उज्ज्वल रंग मगर सबसंग असर करता है</span>मेरी लेखनीhttp://www.blogger.com/profile/17213517389487803793noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7553231715256006441.post-75463422669335978272007-07-10T11:11:00.000+05:302007-07-10T11:13:49.430+05:30ये छोटा बच्चा<span style="color: rgb(102, 0, 204);">कितना खु़श है</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">माँ की गोद में छोटा बच्चा</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">ये बहुत दूर है गुनाहों की लज़्ज़त से अभी</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">अभी इसने झूठ बोलना नहीं सीखा </span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">न ये जानता है अपना मज़हब</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">न इसने लोगों को लड़ते देखा है</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">न इसने बेइमानी देखी</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">न इसने नफ़रत,न जुल्म,न ग़द्दारी देखी</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">अभी ये दुनियादारी नहीं समझता</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">अभी तो चाँद मांगता है ये</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">अपनी माँ तक ही दुनिया जानता है ये</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">कल ये बड़ा होगा</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">झूठ बोलना सीख जायेगा</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">गुनाह इसे आराम देंगे</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">नफ़रत,जुल्म,ग़द्दारी</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">मज़हब हो जायेंगे इसके</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">ये दुनियावालों की तरह खुदग़रज़ हो जायेगा</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">ऐ ख़ुदा काश </span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">ये छोटा बच्चा</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">यूँ ही छोटा रहे</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">हमेशा</span>विभावरी रंजनhttp://www.blogger.com/profile/17929447279673536929noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7553231715256006441.post-39544256090949368972007-07-09T20:28:00.001+05:302007-07-10T11:29:16.682+05:30ज़रा सा मुस्कुराओ ना<span style="color: rgb(102, 0, 204);">गमों</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">की</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">जो</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">फ़सील</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">है</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">वह</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">इस</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">क़दर</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">तवील</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">है</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">ग़ज़ब</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">तो</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">ये</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">है</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">यह</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">एक</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">नहीं</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">फ़सील</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">दर</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">फ़सील</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">है</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">तुम</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">इसकी</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">हर</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">मुंडेर</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">पर</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">आरजूओं</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">के</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">तेल</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">से</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">चरागे</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">दिल</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">जलाओ</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">ना</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">ज़रा</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">सा</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">मुस्कुराओ</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">ना</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">वो</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">फ़िर</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">से</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">याद</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">आ</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">गया</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">जो</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">रूठ</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">कर</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">चला</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">गया</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">उसे</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">ख़याल</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">भी</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">नहीं</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">किसी</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">का</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">दिल</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">दुखा</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">गया</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">अब</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">उसकी</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">मीठी</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">याद</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">में</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">शबों</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">को</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">जाग</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">जाग</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">कर</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">ये</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">रतजगे</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">मनाओ</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">ना</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">थोड़ा</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">सा</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">मुस्कुराओ</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">ना</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">ये</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">ग़म</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">हमेशा</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">आएँगे</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">ये</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">दिल</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">यूँ</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">ही</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">जलाएँगे</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">मगर</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">ख़ुशी</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">के</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">आते</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">ही</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">ये</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">ग़म</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">भी</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">भूल</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">जाएँगे</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">मलूल</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">होगे</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">ग़म</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">से</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">तुम</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">ज़रा</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">फिर</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">अपनी</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">पलकों</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">पे</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">सितारे</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">झिलमिलाओ</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">ना</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">ये</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">आँसू</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">मुझको</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">सौंप</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">के</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);">ज़रा</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">सा</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">मुस्कुराओ</span><span style="color: rgb(102, 0, 204);"> </span><span style="color: rgb(102, 0, 204);">ना</span>विभावरी रंजनhttp://www.blogger.com/profile/17929447279673536929noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7553231715256006441.post-86726586828996365132007-07-09T20:28:00.000+05:302007-07-10T11:20:07.917+05:30दिल की बातें<span style="color: rgb(0, 0, 153);font-family:arial;" >मिल गये थे एक बार जो लब से लब<br /><br />उम्र भर होठों पे अपने मैं ज़बान फेरा </span><br /><span class=""></span><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153);font-family:arial;" >मैं तो फ़िर आप में रहता नहीं,दिल से </span><br /><span class=""></span><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153);font-family:arial;" >आगे फ़िर भींच के छाती से लगाने का </span><span style="color: rgb(0, 0, 153);"><span style="font-family:arial;"><span class="">मज़ा<br /></span><br />दे के बोसा मुझे चितवन में जताता है वो शोख़<br /><br />ऐसा पाया है तूने मज़ा कहीं और </span></span><br /><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153);font-family:arial;" >क्या रुक के वो कहे है जो टक उससे लग चलूँ</span><br /><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153);font-family:arial;" >बस बस परे हो, शौक़ ये अपने तईँ नहीं</span><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153);font-family:arial;" ></span>विभावरी रंजनhttp://www.blogger.com/profile/17929447279673536929noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7553231715256006441.post-47601192194214622222007-07-09T20:19:00.000+05:302007-07-10T11:20:58.304+05:30ज़िन्दगी भी तो देता है मारने वाला<span style="color: rgb(0, 0, 153);font-family:arial;" >नज़र से दिल में मुहब्बत उतारने वाला</span><br /><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153);font-family:arial;" >बहुत अजीज़ है मुश्किल में डालने वाला</span><br /><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153);font-family:arial;" >नयी सहर के दिलासों के बीच</span><br /><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153);font-family:arial;" >छोड़ गया हथेलियों से सूरज निकालने वाला</span><br /><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153);font-family:arial;" >चहार सम्मत से अब धूप के अज़ाब में है</span><br /><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153);font-family:arial;" >वो सायादार दरख्तों को काटने वाला</span><br /><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153);font-family:arial;" >तेरा करम जो नवाज़े</span><br /><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153);font-family:arial;" >तो मै भी बन जाऊँ</span><br /><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153);font-family:arial;" >इबादतों मे तेरी दिन गुज़ारने वाला</span><br /><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153);font-family:arial;" >तेरी अताएँ तो सभी को नवाज़ने वालीं</span><br /><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153);font-family:arial;" >मैं साहिलों को भँवर से पुकारने वाला</span><br /><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153);font-family:arial;" >दिया है ग़म </span><br /><br /><span style="color: rgb(0, 0, 153);font-family:arial;" >तो ज़िन्दगी भी तो देता है मारने वाला</span>shatrujit tripathihttp://www.blogger.com/profile/05260476128150310195noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7553231715256006441.post-80133913147641437492007-07-09T20:17:00.000+05:302007-07-10T11:24:00.444+05:30डरते हैं हर चराग़ की रौशनी से हम<span style="color: rgb(102, 0, 204);font-family:arial;" >रखते नहीं हैं बैर किसी आदमी से हम</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);font-family:arial;" >फ़िर भी हैं अपने शहर में अजनबी से हम</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);font-family:arial;" >देखा है जलते जबसे ग़रीबों का आशियाँ</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);font-family:arial;" >डरते हैं हर चराग़ की रौशनी से हम</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);font-family:arial;" >हम बोलते नहीं तो समझो न बेज़बान</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);font-family:arial;" >हैं अपने घर की बात कहें क्यूँ किसी से हम</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);font-family:arial;" >तेरी खुशी का आज भी इतना खयाल है</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);font-family:arial;" >लेते नहीं हैं साँस भी अपनी ख़ुशी से हम</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);font-family:arial;" >समझेगा तब कहीं वो समान दर हमारा दुख</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);font-family:arial;" >अश्कों की दें मिसाल जो बहती नदी से हम</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);font-family:arial;" >या तो हमारी नज़रों का सारा कुसूर है</span><br /><br /><span style="color: rgb(102, 0, 204);font-family:arial;" >या दूर हो गये हैं बहुत रौशनी से हम</span>विभावरी रंजनhttp://www.blogger.com/profile/17929447279673536929noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7553231715256006441.post-77321460673237598982007-07-08T11:00:00.000+05:302007-07-10T11:25:38.244+05:30कोई बहुत उदास रहता है<div><span style="color: rgb(51, 51, 255);font-family:arial;" >उससे कहना<br /><br />कोई आज भी तुम बिन<br /><br />हिज्र की झुलसती दोपहरों में सुलगता है<br /><br />हब्स ज़दा रातों में<br /><br />पलकों से तारे गिनता है<br /><br />शाम के उदास लम्हों में<br /><br />दरिया किनारे बैठकर तुम्हें याद करता है<br /><br />अक्सर दरख्तों पर तुम्हारा नाम लिखता<br /><br />और मिटाता रहता है<br /><br />हवाओं से तुम्हारी बात करता है<br /><br />तुम्हें लौट आने को कहता है<br /><br />कोई तुमसे बिछड़ कर<br /><br />बहुत उदास रहता है!</span></div>shatrujit tripathihttp://www.blogger.com/profile/05260476128150310195noreply@blogger.com2