एक कोशिश मिल बैठने की....

Monday, August 27, 2007

कुशल तूलिका वाले कवि की नारी एक कला है।

कुशल तूलिका वाले कवि की नारी एक कला है।
फूलों से भी अधिक सुकोमल
नरम अधिक नवनी से,
प्रतिपल पिछल-पिछल उठने वाली
अति इन्दु मनी से,
नवल शक्ति भरने वाली वह कभी नहीं अबला है।

तनया-प्रिया-जननि के
अवगुण्ठन में रहने वाली,
सत्यं शिवम् सुन्दरम् सी
जीवन में बहने वाली,
विरह मिलन की धूप-छाँह में पलती शकुन्तला है।

है आधार-शिला सुन्दरता की
मधु प्रकृति-परी सी,
शुभ संसृति का बीज लिये,
मनु की उस तरुण-तरी सी,
तिमिरावृत्त जीवन के श्यामल पट पर चंद्र्कला है।

करुणा की प्रतिमा वियोग की
मूर्ति-मधुर-अलबेली
निज में ही परिपूर्ण प्रेममय
जग आधार अकेली,
सारी संसृति टिकी हुई ऐसी सुन्दर अचला है

अमृत-सिन्धु ,तू अमृतमयी
जग की कल्याणी वाणी।
अब भी चम-चम चमक रही हैं
तेरी चरण निशानी,
तेरे ही प्रकाश से जगमग दीप जला है।
नारी एक कला है॥

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