एक कोशिश मिल बैठने की....

Tuesday, February 26, 2008

मोती बरसा जाता ।

रिमझिम रिमझिम गगन मगन हो मोती बरसा जाता ।
शतदल के दल दल पर ढलकर
नयन नयन के तल में पलकर
बरस- बरस कर तरसे तन को हरित भरित कर जाता ।
हिलती डुलती लचक डालियाँ
बजा रही हैं मधुर तालियाँ
बून्दों की फुलझड़ियों में वह,गीत प्रीत का गाता ।
हृदय- हृदय में तरल प्यास है
प्रिय के आगम का हुलास है
नभ का नव अनुराग राग इस भूतल तल पर आता ।
शुभ्रवला का बादल दल में
ज्यों विद्युत्‍ नभ-नव-घन-तल में
चाव भरे चातक के चित में चोट जगाये जाता ।
चहल-पहल है महल-महल में
स्वर्ग आ मिला धरती-तल में
पल-पल में तरुतृण खग-मृग का रूप बदलता जाता ।
बुझी प्यास संचित धरती की
फली आस पल-पल मरती की
सुख दुःख में हंसते रहना यह इन्दु बताता ।
नभ हो उठा निहाल सजल हो
तुहिन बिन्दुमय ज्यों शतदल हो
शीतल सुरभि समीर चूमकर सिहर- सिहर तन जाता ।
झूमी अमराई मदमाती
केकी की कल- कल ध्वनि लाती
अन्तर-तर के तार- तार कीं बादल बरस भिंगोता ।
भींगी दुनिया भींगा वन- वन
भींग उठा भौंरों का गुँजन
कुंज- कुंज में कुसुम पुंज में मधुमय स्वर बन जाता ।

Tuesday, February 19, 2008

प्रति चरण पर मैं प्रगति का गीत गाता जा रहा हूँ।

प्रति चरण पर मैं प्रगति का गीत गाता जा रहा हूँ।
जा रहा हूँ मैं अकेला
शून्य पथ वीरान सारा
विघ्न की बदली मचलकर
है छिपाती लक्ष्य तारा
दूर मंज़िल है न जाने
क्यों स्वयं मुस्का रहा हूँ॥
जलधि सा गम्भीर हूँ मैं
चेतना मेरी निराली
प्रगति का संदेशवाहक
लौट आऊँगा न खाली
कंटकों के बीच सुमनों की
मधुरिमा पा रहा हूँ
तुम करो उपहास पर
मैं तो हूँ सदा का विजेता
तुम समय की मांग पर
सत्वर-नवल संसृति प्रजेता
आज तक की निज अगति पर
मैं स्वयं शरमा रहा हूँ॥
आज सहमी सी हवाएँ
मन्द-मन्थर चल रही हैं
दिव्य जीवन की सुनहली रश्मियाँ
भी बल रही हैं
मैं युगों पर निज प्रगति का
चिह्न देता आ रहा हूँ॥
अखिल वसुधा तो बहुत
पहले बिहँसते माप छोड़ा
अभी तो कल ही बड़ा
एवरेस्ट का अभिमान तोड़ा।
रुक अभी जा लक्ष्य पर निज
अतुल बल बतला रहा हूँ॥