एक कोशिश मिल बैठने की....

Friday, January 28, 2011

केदारनाथ पाण्डेय

मंच के सफल गायक कवि,मृदुभाषी और लगनशील श्री केदारनाथ पाण्डेय का जन्म बिहार के सीवान जिले में १५ नवम्बर सन् १९३५ ई० को एक मध्यम वर्गीय प्रतिष्ठित परिवार में हुआ। आपके पिता साहित्याचार्य स्वर्गीय श्री सीताराम पाण्डेय संस्कृत के महान् विद्वान के रूप में विख्यात हैं।आपकी प्रारम्भिक शिक्षा श्री गोविन्द संस्कृत विद्यालय,ओझवलिया(मीरगंज)में हुई,जहाँ आपके पिताजी प्रधानाध्यापक थे।

तत्पश्चात् जब आपके पिताजी की नियुक्ति संस्कृत हाई स्कूल गोपालगंज के प्रधानाध्यापक के पद पर हुई तब आप भी गोपालगंज चले गए। और यहीं के आवास-काल में दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय से आपने साहित्याचार्य और हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से साहित्यरत्न की परीक्षाएँ पास की। शिक्षा समाप्ति के उपरान्त कई वर्षों तक मधुसूदन विद्यालय,छितौली सारण में और कुछ वर्षों तक महेन्द्र हाई स्कूल जीरादेई में आप अध्यापन कार्य करते रहे। और इसी दौरान भारतीय स्थल सेना में धर्मशिक्षक के पद पर आपकी नियुक्ति हुई और अगले १८-२० वर्षों तक वहाँ सेवा दी।पाण्डेय जी की काव्य-रचना १९५० से प्रारम्भ हुई और २००८ तक उन्होंने हिन्दी और भोजपुरी के सैकड़ों मर्मस्पर्शी गीतों की रचना की,जिनमें से अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं।उनकी एक और कृति 'हिन्दी की ज्योति रेखा'(व्याकरण)प्रकाशित हुई है।।अभी हाल ही में आपकी एक कृति 'स्वप्न संगिनी' सम्पूर्ण हुई है और छपने वाली है।६०-६५ वर्षों की साहित्य साधना करने के बाद ६ अप्रैल २००८ रविवार को करीब ७४-७५ की अवस्था में आपका देहावसान हुआ.उनकी कुछ हिंदी और भोजपुरी की कवितायेँ पिछले वर्ष कविताकोश में प्रकाशित हुई हैं,जिसके लिए कविताकोश के संपादक जनविजय जी को बहुत बहुत धन्यवाद...........


रिमझिम रिमझिम गगन मगन हो मोती बरसा जाता ।

शतदल के दल दल पर ढलकर
नयन नयन के तल में पलकर

बरस- बरस कर तरसे तन को हरित भरित कर जाता ।

हिलती डुलती लचक डालियाँ
बजा रही हैं मधुर तालियाँ

बून्दों की फुलझड़ियों में वह,गीत प्रीत का गाता ।

हृदय- हृदय में तरल प्यास है
प्रिय के आगम का हुलास है

नभ का नव अनुराग राग इस भूतल तल पर आता ।

शुभ्रवला का बादल दल में
ज्यों विद्युत्‍ नभ-नव-घन-तल में

चाव भरे चातक के चित में चोट जगाये जाता ।

चहल-पहल है महल-महल में
स्वर्ग आ मिला धरती-तल में

पल-पल में तरुतृण खग-मृग का रूप बदलता जाता ।

बुझी प्यास संचित धरती की
फली आस पल-पल मरती की

सुख दुःख में हंसते रहना यह इन्दु बताता ।

नभ हो उठा निहाल सजल हो
तुहिन बिन्दुमय ज्यों शतदल हो

शीतल सुरभि समीर चूमकर सिहर- सिहर तन जाता ।

झूमी अमराई मदमाती
केकी की कल- कल ध्वनि लाती

अन्तर-तर के तार- तार कीं बादल बरस भिंगोता ।

भींगी दुनिया भींगा वन- वन
भींग उठा भौंरों का गुँजन

कुंज- कुंज में कुसुम पुंज में मधुमय स्वर बन जाता ।

1 comment:

My Spicy Stories said...

Interesting and Spicy Love Story, प्यार की स्टोरी हिंदी में and Hindi Story Shared By You Ever. Thank You.