पसपाई की खिफ़्फ़त का असर काट रहा है
मेरी तस्वीर का सर काट रहा है
ज़ालिम तुझे ये भी नही मालूम की अब तक
कोई तेरे हिस्से का सफ़र काट रहा है
ये बात अलग है कोई मक़सद ना हो हासिल
हर शख्स को हर शख्स मगर काट रहा है
वो अपनी निगाहों के इशारे से बराबर
हर देखने वाले की नज़र काट रहा है
वो कौन था ये है उसको गरज़ क्या
ज़ल्लाद तो बस हुक़म पे सर काट रहा है
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