महफ़िल
एक कोशिश मिल बैठने की....
Friday, July 6, 2007
तुम्हारा देखना
यूं बिछड़ना भी बहुत आसां ना था उस से मगर,
जाते जाते उस का वो मुड़ के दुबारा देखना
आईने की आंख ही कुछ कम ना थी मेरे लिए
जाने अब क्या क्या दिखायेगा तुम्हारा देखना
1 comment:
Manas Path
said...
देखूंगा.
अतुल
November 5, 2007 at 4:41 PM
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देखूंगा.
अतुल
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