एक कोशिश मिल बैठने की....

Friday, July 6, 2007

कभी क़ातिल कभी खु़दा

दिल के दीवारों दर पे क्या देखा
बस तेरा नाम ही लिखा देखा

तेरी आखों में हमने क्या देखा
कभी क़ातिल कभी ख़ुदा देखा

अपनी सूरत लगी पराई सी
जब कभी हमने आईना देखा

हाय अंदाज़ तेरे रुकने का
वक़्त को भी रु
का रुका देखा

तेरे जाने में और आने में
हमने सदियों का फ़ासला देखा

फिर ना आया ख़याल जन्नत का
जब तेरे घर का रास्ता देखा

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