अंग्रेज़ी सभ्यता रीति को दूर भगाने वाली 
जन-जन को झकझोर ज़ोर से रोज़ जगाने वाली 
स्वयं बनी मार्जनी स्वरूपा "सम्पादक की वाणी" 
भारत और भारती की जाग्रत वाणी कल्याणी 
अपनी श्वेत प्रभा से भाषा से नवराष्ट्र विधात्री 
सम्पादन की शुचि रुचि से जन जन की प्राण प्रदात्री 
मनुज मनुज को यह प्रदीप्त देवत्व प्रदान करेगी 
जीवन में यज्ञीय-प्रतिष्टा प्रद सम्मान वरेगी 
सम्पादक की वाणि! देवि! यह अभिनन्दन है मेरा 
शाक्त शक्ति जाग्रत कर दो तम हर दो हँसे सवेरा 
 
 
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