एक कोशिश मिल बैठने की....

Friday, July 6, 2007

एहसान मैं न लूंगा

दुनिया के हादसों से तुने मुझे बचा के
बेमौत मार डाला एहसान जता जता के.

तेरा चमकते सूरज एहसान मैं न लूंगा
कर लूंगा मैं उजाला खुद अपना घर जला के.

मैं टूट भी गया तो मुझमें चमक रहेगी
आईना पत्थरों से कहता है मुस्कुरा के.

तुझसे बिछड़ के आलम में हम जी नहीं सकेंगे
देखो दग़ा ना देना अपना मुझे बना के.

1 comment:

Adnan said...

Outstanding......Superb.....Masha-Allah agar kalaam aapka hai to aapko khud he nahi pata ke aap kitni umda shayeri kehte hain....keep it up Boy!