एक कोशिश मिल बैठने की....

Monday, July 9, 2007

ज़रा सा मुस्कुराओ ना

गमों की जो फ़सील है

वह इस क़दर तवील है

ग़ज़ब तो ये है यह एक नहीं

फ़सील दर फ़सील है

तुम इसकी हर मुंडेर पर

आरजूओं के तेल से

चरागे दिल जलाओ ना

ज़रा सा मुस्कुराओ ना

वो फ़िर से याद गया

जो रूठ कर चला गया

उसे ख़याल भी नहीं

किसी का दिल दुखा गया

अब उसकी मीठी याद में

शबों को जाग जाग कर

ये रतजगे मनाओ ना

थोड़ा सा मुस्कुराओ ना

ये ग़म हमेशा आएँगे

ये दिल यूँ ही जलाएँगे

मगर ख़ुशी के आते ही

ये ग़म भी भूल जाएँगे

मलूल होगे ग़म से तुम

ज़रा फिर अपनी पलकों पे

सितारे झिलमिलाओ ना

ये आँसू मुझको सौंप के

ज़रा सा मुस्कुराओ ना

2 comments:

Monika (Manya) said...

बेहद अच्छा लिखा है... कोई भी गम भूल मुस्कुरा उठेगा... दिल में उम्मीद के चिराग जलाते हैं .. अल्फ़ाज़...

Prashant Singh said...

Thanks for writing it sir. It resonated with me . I am in awe of your talent