एक कोशिश मिल बैठने की....

Monday, July 9, 2007

ज़िन्दगी भी तो देता है मारने वाला

नज़र से दिल में मुहब्बत उतारने वाला

बहुत अजीज़ है मुश्किल में डालने वाला

नयी सहर के दिलासों के बीच

छोड़ गया हथेलियों से सूरज निकालने वाला

चहार सम्मत से अब धूप के अज़ाब में है

वो सायादार दरख्तों को काटने वाला

तेरा करम जो नवाज़े

तो मै भी बन जाऊँ

इबादतों मे तेरी दिन गुज़ारने वाला

तेरी अताएँ तो सभी को नवाज़ने वालीं

मैं साहिलों को भँवर से पुकारने वाला

दिया है ग़म

तो ज़िन्दगी भी तो देता है मारने वाला

1 comment:

Monika (Manya) said...

वाह ... क्या बात है...
"दिल से गुजर गया गोया.. ये अल्फ़ाज़ कागज पर उतारने वाला"