नज़र से दिल में मुहब्बत उतारने वाला
बहुत अजीज़ है मुश्किल में डालने वाला
नयी सहर के दिलासों के बीच
छोड़ गया हथेलियों से सूरज निकालने वाला
चहार सम्मत से अब धूप के अज़ाब में है
वो सायादार दरख्तों को काटने वाला
तेरा करम जो नवाज़े
तो मै भी बन जाऊँ
इबादतों मे तेरी दिन गुज़ारने वाला
तेरी अताएँ तो सभी को नवाज़ने वालीं
मैं साहिलों को भँवर से पुकारने वाला
दिया है ग़म
तो ज़िन्दगी भी तो देता है मारने वाला
1 comment:
वाह ... क्या बात है...
"दिल से गुजर गया गोया.. ये अल्फ़ाज़ कागज पर उतारने वाला"
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