एक कोशिश मिल बैठने की....

Friday, July 6, 2007

जब कभी मेरे होठों पे हंसी आई है

गोशा ए ज़हन में किसकी ये सदा आई है
अपने कमरे में तो मैं हूं मेरी तन्हाई है

वक्त बिगड़ा तो ये एहसास हुआ है मुझको
ठीक कहता था कोई दुनिया तमाशाई है

मैंने ख्वाबों को हक़ीक़त में बदलना चाहा
इसीलिए जागते रहने की सज़ा पाई है

हाल पूछो तो अभी रो पड़े जैसे दुनिया
चेहरे
चेहरे पे यहां ग़म की घटा छाई है

यक ब यक चौंक उठे हादसे दुनिया भर के
जब कभी मेरे होठों पे हंसी आई है

No comments: