एक कोशिश मिल बैठने की....

Friday, July 6, 2007

अनमोल सूत्र

सुना है कि पहले दाने-दाने पर खाने वाले का नाम लिखा होता था। कौन लिखता था ये तो आस्तिक लोग ही जानते होंगे। पर अब वही कौन दाने-दाने पर कालाबाज़ार वाले का नाम लिखने लगा है । वही कौन दाने पर खाने वाले के बदले उसके बिना मरने वाले का नाम लिख्नकर काले गोदाम में दाल देता है.

पैसा उपर हो जाता है तो,वह अपना रूप प्रकट करना चाहता है। वह अकुलाता है कि मैं हूं और दिख नहीं रह हूं। मैं अपने को अभिव्यक्त करूं। और पैसा इस तरह फ़ूट्कर प्रकट हो जाता है जैसे कि पके फ़ोडे़ का मवाद।

फ़ूल में सौन्दर्य होता है,गन्ध होती है,कोमलता होती है। मगर ये लक्ष्मी फ़ूल को कुर्सी समझ कर उस पर बैठी है। धन की देवी है न। जब इनका यह हाल है तो देवी के कृपापात्र फ़ूहड़्पन क्यों नहीं करेंगे। फ़िर भी मैं कहता हूं देवी, तू अपनी बैठक बदल दे। सिंहासन पर बैठ मौज ले, हाथ में फ़ूल ले ले या फ़ूल जूड़े मे खोंस ले।

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