गमों की जो फ़सील है
वह इस क़दर तवील है
ग़ज़ब तो ये है यह एक नहीं
फ़सील दर फ़सील है
तुम इसकी हर मुंडेर पर
आरजूओं के तेल से
चरागे दिल जलाओ ना
ज़रा सा मुस्कुराओ ना
वो फ़िर से याद आ गया
जो रूठ कर चला गया
उसे ख़याल भी नहीं
किसी का दिल दुखा गया
अब उसकी मीठी याद में
शबों को जाग जाग कर
ये रतजगे मनाओ ना
थोड़ा सा मुस्कुराओ ना
ये ग़म हमेशा आएँगे
ये दिल यूँ ही जलाएँगे
मगर ख़ुशी के आते ही
ये ग़म भी भूल जाएँगे
मलूल होगे ग़म से तुम
ज़रा फिर अपनी पलकों पे
सितारे झिलमिलाओ ना
ये आँसू मुझको सौंप के
ज़रा सा मुस्कुराओ ना
2 comments:
बेहद अच्छा लिखा है... कोई भी गम भूल मुस्कुरा उठेगा... दिल में उम्मीद के चिराग जलाते हैं .. अल्फ़ाज़...
Thanks for writing it sir. It resonated with me . I am in awe of your talent
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