एक कोशिश मिल बैठने की....

Monday, July 9, 2007

दिल की बातें

मिल गये थे एक बार जो लब से लब

उम्र भर होठों पे अपने मैं ज़बान फेरा


मैं तो फ़िर आप में रहता नहीं,दिल से

आगे फ़िर भींच के छाती से लगाने का मज़ा

दे के बोसा मुझे चितवन में जताता है वो शोख़

ऐसा पाया है तूने मज़ा कहीं और


क्या रुक के वो कहे है जो टक उससे लग चलूँ

बस बस परे हो, शौक़ ये अपने तईँ नहीं

2 comments:

Monika (Manya) said...

यादें और रूमानियत.. पहली पंक्ति बेहद सही लगी...

Adnan said...

arey tu erotica bhi likhta hai???????? hehehehehehe!