मिल गये थे एक बार जो लब से लब
उम्र भर होठों पे अपने मैं ज़बान फेरा
मैं तो फ़िर आप में रहता नहीं,दिल से
आगे फ़िर भींच के छाती से लगाने का मज़ा
दे के बोसा मुझे चितवन में जताता है वो शोख़
ऐसा पाया है तूने मज़ा कहीं और
क्या रुक के वो कहे है जो टक उससे लग चलूँ
बस बस परे हो, शौक़ ये अपने तईँ नहीं
2 comments:
यादें और रूमानियत.. पहली पंक्ति बेहद सही लगी...
arey tu erotica bhi likhta hai???????? hehehehehehe!
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