एक कोशिश मिल बैठने की....

Saturday, July 21, 2007

अजब सुरूर मिला है

अजब सुरूर मिला है मुझको दुआ करके

के मुस्कुराया है खुदा भी सितारा वा करके

गदागरी भी एक अस्लूबे फन है जब मैंने

उसी को माँग लिया उससे इल्तिजा करके

शब्बे फ़िराक़ के ज़ब्र को शिक़स्त हुई

के मैने सुबह तो कर ली खुदा खुदा करके

यह सोच कर कि कभी तो जवाब आएगा

मैं उसके दर पे खड़ा रह गया सदा कर के

यह चारागार हैं की इज़्तिमाये बदज़ौक़ा

वह मुझको देखें तेरी ज़ात से जुदा करके

खुदा भी उनको ना बख़्शे तो लुत्फ़ आ जाए

जो अपने आप से शर्मिन्दा हों खता करके

6 comments:

Divine India said...

काफी अच्छा लिखते हो और तुम्हारे संदर्भ में जानकर और भी अच्छा लगा…।
शब्द तुम्हारे पास हैं यह दिखता है मगर मुझे जो चीज अखरती है वह है भाव का पूर्ण विकास ऐसा लगा मध्य में ही क्रम छूट गया हो…। शब्द तो लेखक के कलम की नर्तकी होती है जिसे तुमने बहुत सराहनीय रुप में खेला है…कलपना वह हो जो ब्रह्मांड का सीना चिर उधर के अस्तित्व को निकाल लाए…।

विभावरी रंजन said...

दिव्याभ,
सच कहूँ तो मैं केवल एक आलोचक हूँ पर कभी-कभार लेखन पर भी हाथ मार दिया करता हूँ,वैसे एक आलोचक की हैसियत से मेरा सोचना है कि कुछ तो लोग कहें और मैं यहाँ सफल हुआ.....वैसे तुम्हें अच्छा लगा ये मेरे लिये बहुत है,आगे सुधार करने का प्रयास रहेगा।

धन्यवाद

Anonymous said...

विभावरी जी,
डिवाइन इंडिया पर आपकी टिप्पणी पढी,
महाराष्ट्र में पिछले रेल्वे बोर्ड के इंटरव्यू में बिहार के २०० लड़के थे जबकि महाराष्ट्र के सिर्फ़ तीन, और उस परीक्षा का विज्ञापन महाराष्ट्र के अखबारों में नहीं छपा था, पटना में ही काहे नहीं सारे रेल्वे के इंटरव्यू करवा लेते भाई,,,और अभी-अभी बिहार गौरव (?) लालू मुम्बई में फ़रमा गये कि मराठी युवकों में प्रतिभा की कमी है, अब ये तो वही जाने कि राबडी़ में कितनी प्रतिभा है, या मराठी युवकों में लालू की तरह "मेनिपुलेशन" की प्रतिभा नहीं है, या शहाबुद्दीन की तरह "मसल" प्रतिभा नहीं है । और चन्द्रगुप्त और बुद्ध की बातें क्या करते हैं भाई, इस जमाने में लौट आईये, रही बात बिहार से आईएएस अधिकारियों की, तो ऐसे बिहारी प्रशासनिक अधिकारी किस काम के, जो तस्लीमुद्दीन जैसों के घर पानी भरें या पप्पू यादव का हुक्का भरें... ये लोग हैं बिहार के असली गौरव तो ये हैं...

Anonymous said...

बेनाम जी आपने भी गाल बजाने की हद कर दी,जनाब आप सिर्फ़ कुछ लोगों की बातें कर रहे हैं,जिन आला अफ़सरों की बात मैंने की थी वो पूरे देश में हैं और रही बात तस्लीमुद्दीन जैसों के घर पानी भरने और पप्पू यादव का हुक्का भरने वाले अफ़सरों की तो वो इक्के दुक्के ही हैं बेनाम ठीक आप ही की तरह और बेनाम लोग तो कुछ भी कर सकते हैं आप तो केवल हुक्का ही भरता देख रहे हैं....और राबड़ी जी की प्रतिभा तो एक राजनैतिक मुद्दा है जो संसद में उछले तो बिहार का भला हो...
और जहाँ तक उन २०० लड़कों की बात है तो आप स्वयं ही अन्दाज़ा लगा लें कि कोई बात तो होगी कि २०० बिहार के लड़के और बाकी ३ अन्य प्रान्तों के,और ये तो ठाकरे साहब ही बतायेंगे कि प्रतिभा किसमें है बिहारी युवकों में या मराठी लड़कों मेंऔर जहाँ तक अखबारों में नही छपे विज्ञापन तो इसका प्रमाण मेरे पास नहीं है.......प्रमाण दें तो मानूँ।
वैसे गौरवशाली संस्कृति को भूल कर कहाँ थोथी टिप्पणियों मे अपना समय बर्बाद कर रहे हैं....कुछ रचनात्मक कामों मे अपना मन लगाइये....और हाँ थोड़ी हिम्मत करके अपना एक प्रोफ़ाइल बनाइये,कब तक यूँ बेनाम भटकेंगे।थक जायेंगे महाशय....वैसे आपने मेरी टिप्पणी पढ़ी और कुछ लिखा लेखनी की स्याही ख़र्च करवाने का बेहद अफ़सोस है......


नमस्कार

Divine India said...

हा हा हा …
भला हो इन मनीषियों का…क्या हो,यही जो कारण है उसे मैंने दिल्ली में 15 साल झेला है अब मुंबई की गर्द में वही होता दिख रहा है…लेकिन बहुत करारा तमाचा मारा है कि बेनाम बादशाह यहाँ तलक खींचे चले आये…।
आलोचक होना तो ठीक मगर जब यह कलम भी चलती है ऐसी तो क्या बात है…मेरा थोड़ा सोंचना यह है कि यहाँ नया क्या लिखा जा रहा है…।
ज्यादातर कविताएँ तो मात्र उड़ती भावों का संगम हैं ब्लाग पर अच्छी वही होती हैं जिसमें कुछ देर तलक रुककर चिंतन किया जा सके…।

Monika (Manya) said...

टिप्प्णी में इतना ही की दिव्याभ ने लेखन और इस ब्लोग के बारे में जो कहा है अपनी टिप्प्णीयों में मैं सहमत हूं..भाषा बहुत अच्छी चीज़ है..और आपका स्तर निःसंदेह बहुत उच्च है.. पर भाव बिना दिल पे असर नहीं होता.. और हां उम्मीद कुछ अलग की.. जल्द ही कुछ ऐसा पढने को मिलेगा उम्मीद करती हूं.. आलोचक स्वयं लिखेगा बात कुछ और ही होगी.. उस अलग बात के इंतजार में...