दयारे दिल की रात में चराग़ सा जला गया
मिला नहीं तो क्या हुअ वह शक्ल तो दिखा गया
जुदाइयों के ज़ख़्म दर्दे ज़िन्दगी ने भर दिए
उसे भी नीन्द आगई मुझे भी सब्र आगया
वह दोस्ती तो ख़ैर अब नसीबे दुश्मनां हुई
वह छोटी-छोटी रन्जिशों का लुत्फ़ भी चला गया
यह सुबह की सफ़ेदियाँ यह दोपहर की ज़र्दियाँ
मैं आइने में ढूँढता हूँ मैं कहाँ चला गया
यह किस ख़ुशी की रेत पर ग़मों को नीन्द आ गई
वह लहर किस तरफ़ गई,यह मैं कहाँ समा गया
जो और कुछ नहीं तो कोई ताज़ा दर्द ही मिले
मैं एक ही तरह की ज़िन्दगी से तंग आ गया
गये दिनों की लाश पर पड़े रहोगे कब तलक
अलम कशो ! उठो कि आफ़ताब सर पर आ गया
5 comments:
जनाब, आपका नाम नहीं जान सका पर आपने बहुत प्यारा लिखा है
Gr8...beautiful n musical way of writing.... मन भावनाओं में तैरने लगा है…उत्कृष्ट!!!
मैंने एकबार लिखा था.."बहुत रातें गुजारी हमने अमावस को सिरहाने रखकर, चलो कुछ देर सोया जाये आफ़्ताब की गोद में.."
सच में कुछ तो बात है..
Bahut acche sir . Ananad aa gaya .
Naaris Kazmi ki bahut achi ghazal hain
dhanyewaad post karne ke liye
Post a Comment